शिवपुरी। राजनीति भी अजब उलटबांसी का खेल है। किस तरह से ऊपर चढ़ाकर मात दी जा सकती है यह सिर्फ राजनीति में ही संभव है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांगे्रस आलाकमान ने दिसम्बर में होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए स्क्रीनिंग कमेटी का चेयरमेन नियुक्त किया है।

यह नियुक्ति काफी अहम  मानी जाती है, लेकिन इस नियुक्ति के सहारे पूर्व सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की दौड़़ से बाहर कर दिया गया है। हालांकि प्रदेश सरकार में कमलनाथ खेमे के मंत्री सुखदेव पांसे का कहना है कि महराष्ट्र चुनाव के लिए स्क्रीनिंग कमेटी का चेयरमेन बनने से सिंधिया प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की दौड़ से बाहर नहीं माने जा सकते, लेकिन जानकारों का कहना है कि स्क्रीनिंग कमेटी का चेयरमेन बनने के बाद सिंधिया तीन माह तक प्रदेश की राजनीति से दूर रहेंगे।

ऐसे में प्रदेश कांग्रेस संगठन का कामकाज प्रभावित होना स्वाभाविक है। इसलिए यह तय है कि सिंधिया अब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नहीं बनेंगे। जिस दिन सिंधिया को महाराष्ट्र चुनाव के लिए स्क्रीनिंग कमेटी का चेयरमेन बनाया गया। उस दिन मुख्यमंत्री कमलनाथ भी भोपाल में थे और यह माना जा रहा है कि इस बार भी सिंधिया कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की चाणक्य जोड़ी का शिकार बने हैं। सिंधिया समर्थक सिंधिया को स्क्रीनिंग कमेटी का चेयरमेन बनाए जाने के फैसले से नाखुश हैं।

प्रदेश की राजनीति में मुख्यमंत्री कमलनाथ, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया बड़े नेताओं  में माने जाते हैं।  लेकिन प्रदेश में कांग्रेस सरकार बनने के बाद सिंधिया कांग्रेस में लगातार हांशिए पर है। प्रदेश में 15 साल बाद कांग्रेस की सरकार बनाने में ज्योतिरादित्य सिंधिया की अहम भूमिका रही।

चुनाव अभियान समिति के चेयरमेन के रूप में उन्होंने प्रदेश में कांग्रेस सरकार को जिताने के लिए जीतोड़ मेहनत की। आशा थी कि सत्ता में आने के बाद सिंधिया को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा, क्योंकि  अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी कमलनाथ संभाले हुए थे। चुनाव में कांग्रेस स्पष्ट बहुमत से बालिश्त भर पीछे रह गई।

कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने सपा, बसपा और कुछ निर्दलीय विधायकों को जोड़कर किसी तरह बहुमत प्राप्त कर लिया। मुख्यमंत्री पद चुनने की नौबत आई तो स्पष्ट रूप से कमलनाथ और सिंधिया दो दावेदार थे और दोनों दावेदारों की राहुल दरबार में पेशी हुई। जहां तय किया गया कि न केवल मुख्यमंत्री कमलनाथ रहेंगे बल्कि लोकसभा चुनाव नजदीक हैं इसलिए प्रदेशाध्यक्ष की जिम्मेदारी भी उन पर पूर्व की तरह बनी रहेगी।

सिंधिया को  भरोसा दिलाया गया कि केंद्र में सत्ता आने पर उन्हें महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जाएगी। कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्दू ने तो बयान दिया था कि केंद्र में राहुल गांधी के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया नम्बर 2 रहेंगे, लेकिन लोकसभा चुनाव में न केवल कांंग्रेस  बुरी तरह पराजित हुई बल्कि सिंधिया स्वयं चुनाव हार गए।

इसके बाद ही कांग्रेस राजनीति में उनके विरोधियों के हौंसले बुलंद हो गए। शासन और प्रशासन पर कमलनाथ और दिग्विजय सिंह का दबदबा लगातार बढ़ता गया। सिंधिया की इच्छा के विपरीत प्रदेश में नियुक्तियां की गईं। राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद कांग्रेस में सिंधिया और अधिक कमजोर हो गए।

इसके बाद सिंधिया ने धारा 370 के मुद्दे पर पार्टी लाइन के विपरीत बयान देकर नरेंद्र मोदी का अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन किया। इससे भी उनकी स्थिति कमजोर हुई। पार्टी अध्यक्ष पद चुनने के बाद जब चली तो पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष मिलिंद देवड़ा ने युवा कांग्रेस अध्यक्ष बनाने की मांग की।

मिलिंद देवड़ा ने तो स्पष्ट रूप से कहा कि सिंधिया या सचिन पायलट को यह अहम जिम्मेदारी दी जाए। त्रिपुरा कांग्रेस कमेटी ने तो एआईसीसी की बैठक में सिंधिया को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव रखा, लेकिन प्रदेश कांग्रेस के किसी भी नेता ने सिंधिया के नाम की पैरवी नहीं की। राजनैतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि एक सोची समझी रणनीति के तहत सिंधिया के कद का लगातार अवमूल्यन करने का प्रयास चल रहा है।

प्रदेश में मुख्यमंत्री कमलनाथ के पुत्र नकुलनाथ और दिग्विजय सिंह के पुत्र जयवद्र्धन सिंह युवा है तथा जब भी किसी युवा को जिम्मेदारी मिलने की बात होगी तो सिंधिया के मुकाबले दोनों कमतर माने जाएंगे। इसलिए ङ्क्षसंधिया को प्रदेश की राजनीति से बाहर करने का एक तरह से पार्टी के भीतर ही सुनिश्चित रूप से षडय़ंत्र चल रहा है। इस समय प्रदेश में कांग्रेस अध्यक्ष पद नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही है।

प्रदेश कांग्रेस प्रभारी दीपक बावरिया पार्टी कार्यकर्ताओं विधायकों और मंत्रियों आदि से चर्चा कर चुके हैं तथा उन्होंने बयान भी दिया है कि प्रदेशाध्यक्ष पद की दौड़ में पहले 10-12 नाम थे, लेकिन अब महज 3 या 4 नाम रह गए हैं इनमें सिंधिया का नाम भी है, लेकिन इसके बाद अचानक सिंधिया को महाराष्ट्र चुनाव के लिए स्क्र्रीनिंग कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त  कर दिया गया और यह माना जा रहा है कि यह नियुक्ति उन्हें प्रदेशाध्यक्ष पद की ताजपोशी से रोकने के लिए है। इसलिए सिंधिया समर्थक इस नियुक्ति का विरोध कर रहे हैं।

इंदौर, 22 अगस्त (भाषा) मध्यप्रदेश विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता गोपाल भार्गव ने सूबे की कमलनाथ नीत कांग्रेस सरकार की स्थिरता पर गुरुवार को सवालिया निशान लगाया। उन्होंने कहा कि "एक बीमार संतान कितने लंबे समय तक जी सकेगी।" भार्गव ने यहां संवाददाताओं से कहा, "कांग्रेस के कई नेता कमलनाथ सरकार के कामकाज को लेकर असहमति व्यक्त करते हुए इस सरकार को चेता चुके हैं। लेकिन मुझे दुख है कि मुख्यमंत्री और उनके मंत्री जिस तरह की मौज-मस्ती की राजनीति कर रहे हैं, उससे मैं मानकर चलता हूं कि इनकी सरकार अल्पकालीन है।" वरिष्ठ भाजपा नेता ने कमलनाथ सरकार के भविष्य को लेकर प्रश्न दागते हुए कहा, "एक बीमार सन्तान कितने लंबे समय तक जी सकेगी? कांग्रेस ने बसपा और सपा के विधायकों और चंद निर्दलीय विधायकों को इधर-उधर से जमा कर प्रदेश में सरकार बनायी है। ये लोग कितने समय तक सरकार का साथ देंगे?" उन्होंने कहा, "जिस दिन कमलनाथ मंत्रिमंडल का विस्तार होगा, उसी दिन मालूम पड़ जायेगा कि कितने लोग सूबे की कांग्रेस सरकार के साथ हैं।" भाजपा के दो विधायकों-नारायण त्रिपाठी और शरद कोल द्वारा एक विधेयक को लेकर कमलनाथ सरकार का समर्थन कर अपनी पार्टी को झटका देने के बारे में पूछे जाने पर भार्गव ने कहा, "त्रिपाठी और कोल अब भी भाजपा के सदस्य हैं और आगे भी रहेंगे।" शिवपुरी जिले के पिछोर क्षेत्र के कांग्रेस विधायक केपी सिंह द्वारा पार्टी के आला नेताओं और कमलनाथ सरकार के विरुद्ध बयानबाजी पर नेता प्रतिपक्ष ने कहा, "प्रदेश में भ्रष्टाचार तथा प्रशासनिक अराजकता को लेकर सिंह के कहे गये शब्द जनता के मन की बात है। उनकी आवाज एक वरिष्ठ कांग्रेसी की दर्द भरी आवाज है। कमलनाथ सरकार को सिंह जैसे मंजे हुए नेता की बात सुननी चाहिये।" भार्गव ने कहा कि उन्हें आशंका है कि केंद्र की भाजपा नीत सरकार की "लोकप्रियता" से घबरायी कमलनाथ सरकार नगरीय निकायों के आगामी चुनाव अनिश्चितकाल के लिये टालना चाहती है और महापौरों व नगर पालिका अध्यक्षों का निर्वाचन अप्रत्यक्ष प्रणाली से कराना चाहती है। उन्होंने कहा, "हमारी मांग है कि नगरीय निकायों के चुनाव तय समय पर ही कराये जायें। इसके साथ ही, महापौरों व नगर पालिका अध्यक्षों के चुनाव प्रत्यक्ष प्रणाली से ही कराये जायें, ताकि इन पदों पर निर्वाचन में जन प्रतिनिधियों की खरीद-फरोख्त की कोई गुंजाइश नहीं रहे।"

पहले चर्चा थी कि आज दिल्ली में राजीव गांधी के जयंती कार्यक्रम के बाद सोनिया गांधी से भी मुलाक़ात के बाद नये पीसीसी चीफ के नाम का एलान हो सकता है

मध्य प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद की रेस में ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी जगह बनाए हुए हैं. उनके साथ 3 से 4 नाम का पैनल है. लेकिन फिलहाल  नए अध्यक्ष के नाम के लिए अभी थोड़ा और इंतजार करना होगा. पहले चर्चा थी कि आज दिल्ली में सीएम कमलनाथ की पार्टी नेता सोनिया गांधी से मुलाक़ात के बाद नये अध्यक्ष के नाम का एलान हो सकता है. लेकिन भोपाल में पार्टी सदस्यों से की गयी रायशुमारी की रिपोर्ट ही अभी दिल्ली नहीं पहुंची है. अध्यक्ष पद की रेस में ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम सबसे आगे चल रहा है.


अभी नहीं बनी बात


बुधवार को पार्टी के प्रदेश प्रभारी दीपक बावरिया ने दिनभर पार्टी सदस्यों से नये प्रदेश अध्यक्ष के बारे में उनकी पसंद और राय जानी. सीएम कमलनाथ पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के जयंती समारोह में शामिल होने के लिए दिल्ली गए हुए हैं. पहले चर्चा थी कि कार्यक्रम के बाद सोनिया गांधी से भी मुलाक़ात के बाद नये पीसीसी चीफ के नाम का एलान हो सकता है. पहले ये माना जा रहा था कि बावरिया अपनी रिपोर्ट देंगे और फिर कमलनाथ-सोनिया की मुलाकात में नाम तय हो जाएगा. लेकिन अभी बावरिया ने अपनी रिपोर्ट ही नहीं सौंपी है. राज्य के पार्टी प्रभारी दीपक बाबरिया कार्यकर्ताओं और पदधिकारियो की राय की एक रिपोर्ट अब एक दो दिन में सोनिया गांधी को सौपेंगे. इसलिए फिलहाल नये प्रदेश अध्यक्ष के नाम का एलान भी टल गया है.

एक-दो दिन में सौंपेंगे रिपोर्ट

दिल्ली में दीपक बाबरिया ने बताया कि एक दो दिन में पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात होगी और कांग्रेस कार्यकर्ताओं की राय पर वो उन्हें रिपोर्ट देंगे. उन्होंने बताया कि अब अध्यक्ष की दौड़ में 3 से 4 लोगों ही रह गए हैं. इससे पहले 10 से 12 नेता अध्यक्ष पद की रेस में थे.

सिंधिया भी दौड़ में शामिल

दीपक बाबरिया ने स्वीकार किया कि अध्यक्ष पद की दौड़ में ज्योतिरादित्य सिंधिया भी शामिल हैं और पैनल में उनका नाम भी है. उन्होंने उम्मीद जताई कि इस महीने के अंत तक नये पीसीसी चीफ के नाम का एलान हो सकता है. रिपोर्ट देने के बाद अंतिम फैसला सोनिया गांधी को ही करना है.


06 करोड़ 30 लाख 36 हजार रुपए की भेजी गई थी डिमांड।

37 लाख 8 हजार आयोजकों को दी जाने वाली राशि।

5 करोड़ 93 लाख 28 हजार दुल्हनों को दी जाने वाली राशि।

1083 दुल्हनों को नहीं मिली प्रोत्साहन राशि।

बैतूल. मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार बनने के बाद सरकार ने कन्या विवाह योजना की राशि 25 हजार रुपए से बढ़ाकर 51 हजार रुपए कर दी थी। मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में गरीब दुल्हनों को शादी के दो माह के बाद भी मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना के तहत शासन से मिलने वाली प्रोत्साहन राशि नहीं मिली है।


 

सात जनपदों में हुए थे सामूहिक विवाह सम्मेलन
जिले की सात जनपदों में 1083 दुल्हनों को राशि का इंतजार है। विभाग के इन दुल्हनों को 5.52 करोड़ रुपए देने हैं औऱ विभाग इन पैसों के लिए शासन से पैसे की डिमांड कर रहा है पर अभी तक पैसे नहीं मिले हैं। जनपदों द्वारा दुल्हनों से कहा जा रहा है कि अभी तक बजट नहीं मिला है। जिले की 3 जनपदों की केवल 153 दुल्हनों को ही योजना की राशि मिली है।

 

51 हजार रुपए मिलते हैं
सरकार के द्वारा प्रोत्साहन के तौर पर 48 हजार रुपए दिए जाते हैं जबकि 3 हजार रुपए विवाह का आयोजन कराने वाली आयोजक संस्था को दिए जाते हैं।

 

15 जून को हुआ था आयोजन
मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के तहत हुए विवाह को जिले की कुछ जनपदों में दो माह का समय हो गया है। इसके बाद भी राशि नहीं मिली। प्रभात पट्टन में 15 जून, 17 जून को अमला, शाहपुर, घोड़ाडोंगरी में 24 जून, भीमपुर में 25 जून, बैतूल में 10 जुलाई और आठनेर में 12 जुलाई को सामूहिक विवाह सम्मेलन का आयोजन किया गया था।

 

25 दुल्हनों की मिली राशि
चिचोली जनपद में 46 विवाह हुए थे। इसके लिए प्रशासन को 23 लाख 46 हजार रुपए की जरूरत थी। पर शासन के द्वारा विभाग को केवल 12 लाख 75 हजार रुपए की राशि मिली। जो 25 दुल्हनों को दे दी गई है। अभी तक 1236 विवाह हुए हैं और 12 निकाह हुए हैं।

स्थान कितने विवाह प्रभातपट्टन 41 आमला 61 मुलताई 34 शाहपुर 510 घोड़ाडोंगरी 230 भीमपुर 27 भैंसदेही 49 चिचौली 46 बैतूल 170 आठनेर 23

क्या कहना है कलेक्टर का
कलेक्टर तेजस्वी एस नायक का कहना है कि योजना के तहत कुछ राशि मिली थी इसे जनपदों को जारी कर दिया गया है। बाकि राशि के लिए सरकार को पत्र लिखा बै। राशि आते ही दुल्हनों के खाते में राशि दी जाएगी।

राउज एवेन्यू कोर्ट में पी चिदंबरम ने सीबीआई अधिकारियों से चुटकी लेते हुए कहा कि यह कोर्ट रूम तो बहुत छोटा है. मुझे बड़े कोर्ट रूम की उम्मीद थी. क्या कोर्ट के सभी कोर्ट रूम छोटे हैं.


 



आईएनएक्स मीडिया केस में पूर्व गृह मंत्री पी चिदंबरम आज पेशी के लिए राउज एवेन्यू कोर्ट पहुंच गए हैं. कोर्ट में पहुंचते ही चिदंबरम ने सबसे पहले अपने वकील विवेक तन्खा, कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी से मुलाकात की. इसके बाद चिदंबरम को कठघरे में खड़ा किया गया.


इस दौरान चिदंबरम ने सीबीआई अधिकारियों से चुटकी लेते हुए कहा कि यह कोर्ट रूम तो बहुत छोटा है. मुझे बड़े कोर्ट रूम की उम्मीद थी. क्या कोर्ट के सभी कोर्ट रूम छोटे हैं. इस पर सीबीआई अधिकारियों ने कहा कि राउज एवेन्यू कोर्ट के सभी कोर्ट रूम छोटे हैं. चिदंबरम मुस्कुराते रहे. फिलहाल पूरे मामले की सुनवाई शुरू हो गई है. दोनों पक्षों की ओर से दलील दी जा रही है.

खचाखच भरा कोर्ट रूम, बाहर लोगों की भीड़

खचाखच भरे कोर्ट रूम के बाहर भी लोगों की भीड़ है. इस दौरान पुलिस ने कोर्ट रूम का दरवाजा बंद करने की कोशिश की, जिसे जज मना कर दिया. जज ने कहा कि दरवाजा बंद मत करो. बाहर के सभी लोगों से चुप रहने को कहें. यदि वे सुन सकते हैं तो वे सुनें, यदि वह सुनना चाहते तो हम कुछ नहीं कर सकते.

चिदंबरम को गेट नंबर 2 से लाया गया

इससे पहले पी चिदबंरम को लेकर सीबीआई की टीम राउज एवेन्यू कोर्ट के गेट नंबर 2 से पहुंची. अमूमन आरोपियों को गेट नंबर 3, 4,5 और 6 से लाया जाता है, लेकिन सीबीआई ने मीडिया को चकमा देते हुए चिदंबरम को लेकर गेट नंबर 1 से पहुंची, लेकिन मीडिया ने घेरा तो उन्हें गेट नंबर 2 से अंदर लाया गया. इस दौरान मीडिया का कैमरा देखकर पी चिदंबरम मुस्कुराते रहे.



चिदंबरम ही नहीं भ्रष्टाचार में फंसे हैं कई कांग्रेस नेता, एक्शन हो तो पार्टी हो जाए खाली


मनमोहन सरकार में गृह और वित्त मंत्री रहे पी चिदंबरम की गिरफ्तारी के बाद अब अन्य कांग्रेस नेताओं के खिलाफ दर्ज मामले भी चर्चा में हैं. जितने नेता करप्शन के मामलों में फंसे हैं, अगर सबके खिलाफ एक्शन हो तो पार्टी के बड़े नेताओं से खाली होने की नौबत आ जाएगी.

 

कांग्रेस के कई बड़े नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों में चल रही जांच(फाइल फोटो-IANS)

कांग्रेस में भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरने वाले पी चिदंबरम अकेले नेता नहीं हैं. पार्टी में टॉप टू बॉटम नेताओं के खिलाफ गंभीर मामले चल रहे हैं. यहां तक कि पार्टी चलाने वालीं कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी भी जमानत पर चल रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी भी कई भाषणों में कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के जमानत पर बाहर होने पर चुटकी भी लेते रहे हैं. संसद के बीते बजट सत्र के दौरान जब कांग्रेस नेता अधीर रंजन ने कहा था कि भ्रष्टाचार के मामले हैं तो गिरफ्तार क्यों नहीं करते, तब पीएम मोदी ने हंसते हुए कहा था- जमानत पर हैं तो एन्जॉय करिए.

भ्रष्टाचार के मामलों को देखें तो दिल्ली से लेकर हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और गुजरात से लेकर महाराष्ट्र तक के बड़े कांग्रेस नेता सीबीआई, इनकम टैक्स और ईडी जैसी एजेंसियों के निशाने पर हैं. माना जा रहा है कि चिदंबरम के बाद अब केंद्रीय जांच एजेंसियां भ्रष्टाचार में फंसे अन्य कांग्रेस नेताओं पर भी शिकंजा कस सकती हैं. इस आशंका से कांग्रेस के कई नेता सहमे हुए हैं. हालांकि कांग्रेस अपने नेताओं पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों से इनकार करती है. पार्टी का कहना है कि बीजेपी की मोदी सरकार राजनीतिक बदले की भावना से कार्रवाई कर रही है.

नेशनल हेराल्ड केस-2011

इस केस में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, उनके बेटे राहुल गांधी और अन्य कांग्रेस नेता फंसे हैं. आरोप है कि कांग्रेस के पैसे से 1938 में एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड नाम की कंपनी खड़ी की गई, जो नेशनल हेराल्ड, नवजीवन और क़ौमी आवाज़. नामक तीन अखबारों का संचालन करती थी. एक अप्रैल 2008 को सभी अखबार बंद हो गए. इसके बाद कांग्रेस ने 26 फरवरी 2011 को इसकी 90 करोड़ रुपये की देनदारियों को अपने जिम्मे ले लिया था. मतलब पार्टी ने इसे 90 करोड़ का लोन दे दिया. इसके बाद 5 लाख रुपये से यंग इंडियन कंपनी बनाई गई, जिसमें सोनिया और राहुल की 38-38 फीसदी हिस्सेदारी है.

बाद में घालमेल कर यंग इंडियन के कब्जे में एजेएल कंपनी को कर दिया गया. इसके बाद कांग्रेस पार्टी ने 90 करोड़ का लोन भी माफ कर दिया. यानी 'यंग इंडियन' को एक प्रकार से मुफ्त में एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड नाम की कंपनी का मालिकाना हक मिल गया. बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी का आरोप है कि यह सब कुछ दिल्ली में बहादुर शाह जफर मार्ग पर स्थित हेराल्ड हाउस की 16 सौ करोड़ रुपये की बिल्डिंग पर कब्जा करने के लिए किया गया.

हेलिकॉप्टर घोटालाः अहमद पटेल और कमलनाथ के भांजे एक्शन की जद में

अगस्ता वेस्टलैंड वीआइपी हेलीकॉप्टर खरीद घोटाला 2013 में सामने आया. कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल पर इतालवी चॉपर कंपनी अगस्ता वेस्टलैंड से कमीशन लेने के आरोपों की सीबीआई आदि केंद्रीय एजेंसियां जांच कर रही हैं. इस मामले में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ के भांजे रतुल पुरी भी फंसे हैं. अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले से जुड़े धनशोधन मामले में जारी गैर जमानती वारंट रद्द करने की अर्जी को राउज एवेन्यू कोर्ट नामंजूर कर चुका है.

यह मामला अगस्ता वेस्टलैंड कंपनी से 36 अरब रुपए के 12 वीआईपी हेलिकॉप्टर ख़रीदने थे से जुड़ा है. आरोप है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया इस वीआईपी चॉपर खरीद के पीछे अहम भूमिका निभा रही थीं. बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने इस मामले को पिछली मोदी सरकार में उठाया था, जिसके बाद घमासान मचा था.

एंबुलेस घोटालाः गहलोत और पायलट भी फंसे

ये मामला 2010 से लेकर 2013 तक एनआरएचएम के तहत एंबुलेंस खरीदने में हुई धांधली का है. एंबुलेंस खरीदने के लिए जो टेंडर जारी किया गया, उसमें गड़बड़ी की गई थी.  इस मामले में 31 जुलाई 2014 को जयपुर के अशोक नगर थाना पुलिस ने जयपुर नगर निगम के पूर्व मेयर पंकज जोशी की शिकायत पर मामला दर्ज किया गया था. राजे सरकार के अनुरोध पर मामला सीआईडी को सौंप दिया गया था.

करोड़ों की एंबुलेंस खरीद में पूर्व केन्द्रीय मंत्री पी चिदम्बरम के पुत्र कार्ति चिदम्बरम, राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, पूर्व स्वास्थ्य मंत्री ए.ए खान, श्वेता मंगल, शफी माथेर और निदेशक एन आर एच एम के विरूद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी), 467 (जालसाजी), 468 (धोखाधड़ी के लिए जालसाजी), 471, और 120 (बी) के तहत मामला दर्ज किया गया था. ईडी अब तक 12 करोड़ की संपत्तियां आरोपियों से जब्त कर चुकी है.

डीके शिवकुमार

कर्नाटक में कांग्रेस के दिग्गज नेता डीके शिवकुमार के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति दर्ज करने का मामला चल रहा है. 2017 में इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने डीके शिवकुमार के 64 ठिकानों पर जबर्दस्त छापेमारी की थी. टैक्स चोरी की शिकायतों पर यह कार्रवाई हुई थी. उस दौरान डीके शिवकुमार व अन्य कांग्रेस नेताओं ने राजनीतिक बदले की भावना से कार्रवाई करने का आरोप लगाया था.

वीरभद्र सिंह

हिमाचल के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता वीरभद्र सिंह के खिलाफ भी केंद्रीय एजेंसियों की जांच जारी है. सितंबर 2015 में उनकी बेटी की शादी के दिन सीबीआई ने छापेमारी कर खलबली मचा दी थी. आय से अधिक संपत्तियों के मामले में सीबीआई हिमाचल के इस दिग्गज कांग्रेस नेता के खिलाफ जांच कर रही है.

हरीश रावत

उत्तराखंड के दिग्गज कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी सीबीआई जांच की जद में हैं. उनके खिलाफ अप्रैल 2016 में सदन में फ्लोर टेस्ट से पहले बागी विधायकों को समर्थन के लिए घूस की पेशकश करने का आरोप है.

भूपिंदर सिंह हुड्डा

हरियाणा के पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा के खिलाफ भी गुरुग्राम में जमीन सौदे के मामले में जांच चल रही है.

जगदीश टाइटलर

वरिष्ठ कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर भी भ्रष्टाचार के मामले में फंसे हैं. सुप्रीम कोर्ट इस मामले में किसी तरह की राहत देने से इनकार करते हुए निचली अदालत को एक साल के अंदर ट्रायल पूरा करने का निर्देश दिया है. मामला वर्ष 2009 का है.

दरअसल टाइटलर पर आरोप है कि उन्होंने बिजनेसमैन अभिषेक वर्मा के साथ मिलकर तत्कालीन गृह राज्य मंत्री अजय माकन के फर्जी लेटर हेड का इस्तेमाल कर तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर एक चीनी टेलीकॉम कंपनी के अफसरों को वीजा के नियमों में छूट देने की सिफारिश की थी. टाइटलर और वर्मा के खिलाफ फर्जीवाड़ा, धोखाधड़ी, आपराधिक षड्यंत्र सहित भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धाराओं के तहत चल रहे केस में आरोप तय हो चुके हैं.

विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने कर्जमाफी की घोषणा की थी।


भाजपा लगातार कर्जमाफी के मुद्दे पर सरकार को घेरने का प्रयास कर रही है।


भोपाल. मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार द्वारा किसानों की कर्जमाफी का नया प्रारूप तैयार किया है। इस प्रारूप से प्रदेश के करीब पांच लाख किसानों को कर्जमाफी का फायदा नहीं मिलेगा। नए प्रारूप के अनुसार, प्रदेश में किसानों पर दो लाख रुपए से एक रुपया भी ज्यादा कर्ज है तो सरकार उनका कर्ज माफ नहीं करेगी। माना जा रहा है कि ऐसे में पांच लाख किसान कर्जमाफी योजना से बाहर किए जाएंगे। सरकार के नए प्रारूप के अनुसार अब केवल उन्हीं किसानों का कर्ज माफ होगा, जिन पर दो लाख रुपए तक का कर्ज है।


  

गरीबों को मिले फायदा
सरकार का मानना है कि बैंक उन्हीं किसानों को दो लाख रुपए से ज्यादा का कर्ज देती है जो संपन्न हैं। ऐसे में इस योजना का मकसद गरीब किसानों को कर्ज के बोझ से मुक्त करना है।

 

चुनाव में की थी कर्जमाफी की घोषणा
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के समय कांग्रेस ने किसानों का दो लाख रुपए तक का कर्ज माफ करने का ऐलान किया था। सरकार बनी तो कर्जमाफी वाले 37 लाख किसानों की सूची तैयार की गई। इसमें ऐसे पांच लाख किसान भी शामिल थे, जिनका कर्ज 2.10 लाख, 2.50 लाख रुपए या उससे ज्यादा है। सरकार ने अब तय किया है कि इनका कर्ज माफ नहीं किया जाएगा।

 

ऐसे समझें कर्जमाफी का पूरा गणित 
कर्जमाफी के नए प्रारूप में तीन चरण हैं। पहले चरण में सरकार 50 हजार तक का कर्ज माफ कर चुकी है। इसमें एनपीए राशि वाली माफी भी शामिल है। सरकार का दावा है कि अभी तक ऐसे 21 लाख किसानों का कर्ज माफ हो चुका है। अब 5 लाख किसानों पर दो लाख से ज्यादा का कर्ज है। इन्हें बाहर करने के बाद 11 लाख किसान माफी के दायरे में आएंगे। दूसरे चरण में इसी साल 6 लाख किसानों का कर्ज माफ होगा। इसमें सहकारी व ग्रामीण विकास बैंक के कर्ज माफ होंगे। तीसरा चरण अगले सत्र से शुरू होगा। इसमें कमर्शियल बैंकों का दो लाख तक का करीब पांच लाख किसानों का कर्ज माफ होगा।

 

 

1. एक लाख तक के कर्ज को इस साल माफ किया जाए। इसके बाद अगले वित्तीय सत्र में बाकी दो लाख रुपए तक की कर्जमाफी की जाए। (यह मॉडल रिजेक्ट किया गया)
2. 50-50 हजार रुपए की किश्तों में चार चरणों में कर्जमाफी हो। पहला चरण पूरा हो चुका है। इसके बाद तीन चरण और रखे जाएं। (यह मॉडल भी रिजेक्ट किया गया)
3. दूसरे चरण में सहकारी और ग्रामीण विकास बैंक का कर्ज माफ किया जाए। इसके बाद तीसरा चरण कमर्शियल बैंक कर्ज माफी का हो। (यह मॉडल मंजूर किया गया)

 



यूपीए, महाराष्ट्र व उप्र का यही मॉडल
कमल नाथ सरकार ने कर्जमाफी के लिए यूपीए सरकार, महाराष्ट्र और उत्तरप्रदेश सरकार के मॉडल को अपनाया है। यूपीए सरकार के समय केंद्र में तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह ने इसी तरह निश्चित राशि तक कर्ज माफी दी थी। यही मॉडल महाराष्ट्र और उत्तरप्रदेश सरकार ने लागू किया।

कमलनाथ खेमे और ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के मंत्रियों के बीच पहले भी टकराव हो चुका है।

सिंधिया खेमे के मंत्री सरकार पर अनदेखी करने का आरोप लगा रहे हैं।

भोपाल. मध्यप्रदेश में एक बार फिर से कांग्रेस मुश्किलों में घिर सकती है। कमल नाथ सरकार की मंत्री इमरती देवी ने अपनी ही सरकार पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री कमल नाथ पर भी अप्रत्यक्ष रूप से हमला बोला है। इमरती देवी सिंधिया खेमे की मंत्री मानी जाती हैं और मध्यप्रदेश में महिला बाल विकास मंत्री बनने के बाद उन्होंने कहा था अगर महाराज ( ज्योतिरादित्य सिंधिया ) झाड़ू लगाने को कहेंगे तो वो भी लगाने को तैयार हैं।

  
मंच से सरकार पर बोला हमला
रविवार को राजधानी भोपाल में अजाक्स के प्रांतीय सम्मेलन में प्रदेश की महिला एवं बाल विकास मंत्री इमरती देवी नाराज दिखीं। इमरती देवी ने कहा- दो अप्रैल 2018 तो अनुसूचित जाति के लोग शांतिपूर्वक तरीके से शहर बंद करना चाहते थे, लेकिन हमारे ही लोग मरे और हम पर ही केस लगा दिया गया। यह बात मुझे मुख्यमंत्री कमल नाथ और गृह मंत्री बाला बच्चन के सामने कहने थी पर वो कार्यक्रम से चले गए। अब अपनी बात किसको सुनाऊं, यहां मौजूद लोग तो मेरे लोग हैं इनको तो कभी भी सुना सकती हूं।

केस वापस क्यों नहीं ले रहे हैं
इमरती देवी ने कहा- गृहमंत्री बिजली, पानी सहित अन्य मामलों के सभी केस वापस ले रहे हैं तो फिर हमारे लोगों पर हुए केस क्यों नहीं ले रहे हैं, इस बात का मुझे दुख है।


तबादले पर भी नहीं पूछा
इमरती देवी ने कहा- जेएन कंसोटिया के साथ मैंने सात महीने तक मंत्रालय चलाया। कंसोटिया का कार्यकाल अच्छा रहा लेकिन रातों-रात उनका तबादला कर दिया गया। हमको पता ही नहीं चला। मैं महिला एवं बाल विकास मंत्री हूं, मुझसे पूछ लेते कि कंसोटिया को हटाना है या नहीं। मैं 2008 से विधायक हूं मैं मंत्री किसी की दया से नहीं बनी हूं, बल्कि बाबा साहेब के कारण बनी हूं।


कार्यक्रम में मौजूद थे सीएम
अजाक्स के प्रांतीय सम्मेलन में मुख्यमंत्री कमल नाथ, गृहमंत्री बाला बच्चन, पीसी शर्मा, ओमकार मरकाम, प्रभुराम चौधरी और इमरती देवी मौजूद थीं। इमरती देवी से पहले सीएम और गृह मंत्री ने अपना भाषण दिया और फिर कार्यक्रम से चले गए।



मप्र के मौजूदा राजनीतिक हालात बताते हैं कि 15 साल बाद सत्ता में आई कांग्रेस गुटबाजी औऱ कबीलाई कल्चर से बाहर नहीं आ पाई है और सिंधिया इस समय  खुद के सत्ता साकेत में हाशिए पर हैं। उनकी गुना से हुई पराजय ने व्यक्तिगत रूप से उन्हें कमजोर कर दिया है। 
सिंधिया समर्थक चाहते थे कि मप्र कांग्रेस के अध्यक्ष पद सिंधिया को मिले ताकि मप्र में सिंधिया का हस्तक्षेप बना रहे, लेकिन कमलनाथ इसके लिए राजी नहीं हैं क्योंकि वे सत्ता का कोई दूसरा केंद्र विकसित नहीं होने देना चाहते हैं।
इधर, लोकसभा में पार्टी की हार के बाद कमलनाथ ने मप्र कांग्रेस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया लेकिन अब वे इस पद पर आदिवासी कार्ड खेलकर सिंधिया को रोकने में लगे हैं और अपने खास समर्थक गृहमंत्री बाला बच्चन या ओमकार मरकाम को पीसीसी चीफ बनाना चाहते हैं। इस मिशन में उन्हें दिग्विजयसिंह का साथ है जो परम्परागत् रूप से सिंधिया राजघराने के विरोधी हैं। समझा जा सकता है कि मप्र की सत्ता से बाहर किए गए सिंधिया को संगठन में भी यहां आसानी से कोई जगह नहीं मिलने वाली है।

राज्य के विधायक अब अपनी अपनी डिमांड कमलनाथ से कर रहे हैं। कुछ विधायकों को अपने इलाके में भी बंगले, दफ्तर जैसी सुविधाएं चाहिए तो किसी को गाड़ी खरीदने के लिए सरकार कर्ज चाहिए। फिलहाल राज्य सरकार विधायकों की इन मांगों को कब पूरा करेगी ये तो बाद में पता चलेगा। लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री कमलनाथ की मुश्किलें इन मांगों से बढ़ गई हैं।


भोपाल। मध्यप्रदेश में किसी को लैपटॉप चाहिए तो किसी को अपने इलाके में कोठी तो किसी अपने लिए गाड़ी खरीदने के लिए कर्ज चाहिए। यही नहीं विधायक सरकारी कामकाज निपटाने के लिए एक नहीं बल्कि दो सहायक चाहते हैं। फिलहाल विधायकों की डिमांड को देखते हुए मुख्यमंत्री कमलनाथ का सिर चकरा गया है। क्योंकि राज्य सरकार का खज़ाना खाली है लेकिन विधायकों की डिमांड है कि पूरी नहीं हो रही है।


राज्य के विधायक अब अपनी अपनी डिमांड कमलनाथ से कर रहे हैं। कुछ विधायकों को अपने इलाके में भी बंगले, दफ्तर जैसी सुविधाएं चाहिए तो किसी को गाड़ी खरीदने के लिए सरकार कर्ज चाहिए। फिलहाल राज्य सरकार विधायकों की इन मांगों को कब पूरा करेगी ये तो बाद में पता चलेगा।

लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री कमलनाथ की मुश्किलें इन मांगों से बढ़ गई हैं। क्योंकि सरकार के पैसा नहीं है। लिहाजा विधायकों की मांग कैसे पूरी की जाएगी राज्य सरकार के पास ये बड़ी समस्या है। राज्य में कांग्रेस की सरकार निर्दलीय और बसपा और सपा विधायकों के समर्थन से चल रही है। कांग्रेस के ही कई विधायक मंत्री न बनाए जाने से नाराज चल रहे हैं।

फिलहाल राज्य की 14 वीं विधानसभा में विधायकों को 35,000 का लैपटॉप दिए जाने का फैसला किया था लेकिन अब कांग्रेस सरकार ने इसे बढ़ाकर 50,000 रुपये कर दिया गया। राज्य विधानसभा के 230 सदस्यों को लैपटॉप के लिए 50 हजार रुपया दिया जाएगा। जबकि जिन विधायकों को पहले मिल चुका है, उन्हें भी दोबारा दिया जाएगा। 

राज्य के विधायक चाहते हैं कि उन्हें अपने क्षेत्र में बंगला, दफ्तर जैसी सुविधाएं भी मिलनी चाहिए। इसके साथ ही दो करोड़ की विधायक निधि को दोगुना किया जाना चाहिए। यही नहीं विधायक सांसदों की तरह रेलवे कार्ड के साथ साथ सरकारी कामकाज के लिए दो निजी सहायकों की मांग कर रहे हैं।

क्या मिलता है विधायकों को

मध्यप्रदेश में विधायकों को हर महीने 30,000 रुपये का वेतन, 35,000 निर्वाचन क्षेत्र भत्ता, 10,000 टेलीफोन भत्ता, 10,000 रुपये डाक भत्ता, 15,000 रुपये कंप्यूटर ऑपरेटर भत्ता और 10,000 रुपये चिकित्सा भत्ता मिलता है। ये कुल मिलाकर 1,10,000 रुपये प्रतिमाह आता है। 

केपी सिंह पूर्व मंत्री औऱ लगातार छठवीं बार विधायक बने हैं।

शिवपुरी. मध्यप्रदेश में एक बार फिर से कांग्रेस विधायक की नाराजगी सामने आई है। शिवपुरी जिले के पिछोर से विधायक केपी सिंह कक्काजू ने अपनी ही पार्टी पर हमला बोला है। पिछोर विधानसभा में एक सभा को संबोधित करते हुए केपी सिंह ने कहा- अब जनता कांग्रेस के साथ नहीं है। सभा को संबोधित करते हुए केपी सिंह ने कहा- राहुल गांधी हमारी पार्टी के अध्यक्ष थे लेकिन वो भी चुनाव हार गए। ऐसे बहुत सारे नेता चुनाव हार गए जिनके बारे में कहते थे कि ये चुनाव नहीं हारेंगे। उसमें हमारे सिंधियाजी भी थे, वो भी चुनाव हार गए। उससे यह संदेश गया कि अब पब्लिक कांग्रेस के साथ नहीं है।

  
हमारी सरकार में भी भ्रष्टाचार
केपी सिंह ने कमलनाथ सरकार पर भी हमला बोलते हुए कहा, विधानसभा में किसी तरह से सरकार बन गई, तो इस मानसिकता के भय से बहुत बड़ा दबाव प्रशासनिक विभागों में नहीं बन पाया। वही पुरानी व्यवस्था, लूट खसोट, भ्रष्टाचार, अनाचार का वातावरण बना हुआ है। कुछ कमी आई है, लेकिन उतना असर नहीं हुआ है। केपी सिंह ने कहा- जो बदलाव सरकार बनने के बाद आना चाहिए था वह नहीं आया है। इसलिए प्रशासनिक सुधार नहीं हो पा रहा है। मेरे मन में भी संतुष्टि नहीं है। धीरे-धीरे बदलाव की कोशिश की जा रही है।

कैबिनेट का समीकरण बिगड़ा
कक्काजू के मंत्री नहीं बनने का मलाल भी दिखाई दिया। उन्होंने कहा कि प्रदेश में कांग्रेस सरकार 15 साल बाद आई है। सरकार बनने के बाद कयास लगाए जा रहे थे कि पार्टी वरिष्ठ विधायकों को कैबिनेट में शामिल करेगी। लेकिन पूर्ण बहुमत हासिल नहीं होने की स्थिति में कैबिनेट के समीकरण बिगड़ गए।

दिग्विजय सिंह खेमे के माने जाते हैं कक्काजू
बता दें कि केपी सिंह लगातार छठवीं बार पिछोर से विधायक चुने गए हैं। उन्होंने कहा अभी जनता मेरा साथ दे रही है तो मैं जीत रहा हूं, जिन लोगों को आने वाले समय में पंचायत चुनाव लड़ना है वो अभी से अपना व्यवहार ठीक कर लें। उन्होंने कहा कि जनवरी-फरवरी में चुनाव होने हैं। पहले दिसंबर में हो जाते थे लेकिन हमारी पार्टी जानती है कि अगर जल्दी चुनाव हुए तो लोकसभा की तरह पत्ता साफ हो जाएगा। केपी सिंह दिग्विजय सिंह खेमे के माने जाते हैं। वो दिग्विजय सिंह के शासनकाल में मंत्री भी रह चुके हैं।

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर (Babulal Gaur) का 89 वर्ष की आयु में भोपाल में निधन हो गया. कभी अपना भरोसेमंद समझकर उमा भारती ने बाबूलाल गौर को मुख्यमंत्री का पद सौंपा था, मगर बाद में वही बाबूलाल मध्य प्रदेश की राजनीति में उमा भारती के लिए बाधक बन गए.


 



मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर का निधन हो गया


मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर का बुधवार को निधन हो गया. बाबूलाल गौर को उमा भारती की कृपा से कभी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली थी. मगर उन्हीं बाबूलाल गौर की वजह से उमा भारती की मध्य प्रदेश में सियासत की जमीन ही खिसक गई.


दरअसल 2003 के विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश की सत्ता में बीजेपी के आने पर उमा भारती मुख्यमंत्री बनी थीं. मगर साल भर बाद ही कर्नाटक में हुबली की एक अदालत ने दंगा भड़काने के 10 साल पुराने एक मामले में उनके खिलाफ वारंट जारी कर दिया था.

कर्नाटक से आईपीएस डी रूपा के नेतृत्व में वारंट को तामील कराने पुलिस अधिकारियों की टीम भी निकल पड़ी थी. गिरफ्तारी की लटकती तलवार देखकर बीजेपी नेतृत्व ने उमा भारती पर नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने को कहा. जिसके बाद उमा भारती ने पद छोड़ दिया. मगर कुर्सी छोड़ने से पहले राज्य के गृहमंत्री बाबूलाल गौर का नाम उन्होंने मुख्यमंत्री पद के लिए बढ़ाया.

दरअसल उमा भारती का बाबूलाल पर इतना भरोसा था कि जब भी वे कहेंगी तो उनके लिए बाद में कुर्सी खाली कर देंगे. मगर एक बार कुर्सी मिलने के बाद बाबूलाल गौर कुर्सी से उतरने को तैयार नहीं हुए. जबकि कहा जाता है कि कुर्सी सौंपने से पहले उमा भारती ने बाबूलाल गौर को 21 देवी-देवताओं की कसम खिलाई थी. दोबारा सीएम की कुर्सी न मिलने पर उमा भारती बीजेपी से बागी हो गईं.

इस बीच बाबूलाल गौर के खिलाफ पार्टी नेतृत्व को तमाम तरह की शिकायतें भी मिलने लगीं. बीजेपी ने बीच का रास्ता निकालते हुए दोबारा उमा भारती को मौका देने की जगह शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया. तब शिवराज सिंह चौहान पार्टी के महासचिव थे. आखिरकार 2005 में शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने.

मुख्‍यमंत्री सचिवालय ने कलेक्‍टरों को कुल 13 हजार 169 शिकायतों का ब्योरा भेजा। अगले महीने करेंगे समीक्षा।

भोपाल। जिला और निचले स्तर पर कमजोर गवर्नेंस और सीएम हेल्पलाइन में दर्ज शिकायतों का निपटारा नहीं होने से मुख्यमंत्री कमलनाथ खफा हैं। लिहाजा, सीएम सचिवालय ने प्रदेश के सारे कलेक्टरों को पत्र भेजकर सात विभागों की जनता से जुड़ी शिकायतों की संख्या भेजकर कहा है कि अगस्त में ही इनका निराकरण कर लें।

मुख्यमंत्री अगले महीने जन अधिकार कार्यक्रम में सारे कलेक्टरों से इन शिकायतों के संबंध में बातचीत भी करेंगे। सीएम सचिवालय ने साफतौर पर कलेक्टरों को चेता दिया है कि अगले महीने वे पूरी तैयारी से रहें, शिकायतों की वस्तुस्थिति से उन्हें सीएम को अवगत कराना होगा।


शिकायत ज्यादा होना यानी कमजोर गवर्नेंस- मुख्यमंत्री ने कलेक्टर और कमिश्नर को साफ संकेत दिए हैं कि जिन जिलों में ज्यादा शिकायतें लंबित हैं यानी वहां की गवर्नेंस में ज्यादा सुधार की जरूरत है। सूत्रों के मुताबिक सीएम हेल्पलाइन में भी लंबित समस्याओं के लिए अब सीधे कलेक्टर को ही जिम्मेदार ठहराया जाएगा।

सीएम के पीएस ने लिखा पत्र - सीएम सचिवालय के प्रमुख सचिव अशोक बर्णवाल ने सभी कलेक्टरों को पत्र भेजकर लंबित शिकायतों के त्वरित निपटारे का निर्देश दिया है। उन्होंने कहा कि इन शिकायतों की समीक्षा मुख्यमंत्री कमलनाथ अगले महीने करेंगे, इसलिए बेहतर है कि जिन विभागों की शिकायतें हैं, उनसे निराकरण करवाएं

किस विभाग की कितनी शिकायतें

राजस्व विभाग - 1689 शिकायतें, सरकार ने कहा है कि यह शिकायतें भूअर्जन, विवादित-अविवादित नामांतरण और बंटवारे के लंबित प्रकरणों की हैं।


लोक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण - 2891 शिकायतें, जननी सुरक्षा योजना का लाभ न मिलने के मामलों का निपटारा नहीं किया गया है।

जनजातीय कल्याण विभाग - 850 शिकायतें, शिष्यवृत्ति, छात्रवृत्ति नहीं मिलने या विलंब से मिलने के मामलों का निपटारा नहीं किया गया है।


पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग - 2461 शिकायतें, प्रधानमंत्री आवास योजना की किस्त नहीं दिए जाने के संबंध में है।

सामाजिक न्याय- 693 शिकायतें, मुख्यमंत्री कन्या विवाह और निकाह योजना के मामलों में निपटारा नहीं किया गया है।


ऊर्जा विभाग - 1217 शिकायतें, तार टूटने सहित छोटी-मोटी शिकायतें महीनों से लंबित हैं।

गृह विभाग - 3366 शिकायतें, एफआईआर न लिखने, समय पर नहीं लिखने या सही धाराएं नहीं लगाए जाने के मामले लंबित बताए जा रहे हैं।

भोपाल: मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार को सत्ता में आए 8 महीने से ज्यादा हो गए हैं, लेकिन अभी भी सरकार के मंत्रियों और अफसरों के बीच तालमेल सही नही है। मंत्री और विधायको के विवाद आए दिन सामने आ रहे हैं। कमलनाथ सरकार में कैबिनेट मंत्री ओमकार सिंह मरकाम का अफसरों के रवैये पर दर्द छलका है। उन्होंने अफसरों के रवैये पर सवाल उठाते हुए महापुरुषों के फोटो हटाकर उनके फोटो अपने कमरे में लगाने की बात कही है।
दरअसल, मप्र के सीएम कमलनाथ ने सोमवार को कैबिनेट की बैठक बुलाई थी। इस बैठक में कई अहम प्रस्तावों को मंजूरी दी गई। वहीं बैठक खत्म होने के बाद कैबिनेट मंत्री मरकाम का दर्द छलका। उन्होंने ने कहा कि मैं मेरे कक्ष में लगे महापुरुषों के फोटो हटाकर आईएएस-आईपीएस अधिकारियों के फोटो लगाऊंगा, ताकि मेरी सुनवाई हो सके। आपको बता दें कि यह कोई पहली बार नही है कि जब इस तरह अफसरों के कामकाज को लेकर सवाल उठे हो। पहले भी कई बार बैठको में यह मुद्दा उठ चुका है। हालांकि इसके चलते कईयों के तबादले भी किए गए हैं, लेकिन तालमेल अब भी नहीं बन रहा है। आए दिन मंत्री-विधायकों की अफसरों के साथ अनबन की खबरे मीडिया में सुर्खियां बनी हुई है।

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