तो मध्यप्रदेश बन गया है सियासत का नया बदलापुर

भोपाल. मध्यप्रदेश अब सियासत का नया बदलापुर बनता जा रहा है। कर्नाटक में बीजेपी की चाल से मात खाई कांग्रेस, मध्यप्रदेश में बदला ले रही है। पॉलिटिक्स के बदलापुर के नायक मध्यप्रदेश के सीएम कमलनाथ हैं। शिवराज सिंह के राज की फाइलें अब वे दनादन खुलवा रहे हैं। इन फाइलों के जरिए सीएम कमलनाथ बीजेपी के मैनेजर्स को टारगेट कर रहे हैं। जो मध्यप्रदेश में पार्टी के खेवनहार हैं।


 

कर्नाटक के नाटक का अंत होते ही मध्यप्रदेश बीजेपी नाटक शुरू होने का दावा कर रही थी। कमलनाथ ने बीजेपी को अपने फुल प्रूफ प्लानिंग के जरिए ऐसे चोट किया, जिसकी भनक बीजेपी के दिग्गजों को नहीं थी। मध्यप्रदेश विधानसभा में दंड विधि संशोधन विधेयक के लिए हुई वोटिंग में बीजेपी के दो विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की। इसके बाद बीजेपी खेमे में खलबली मच गई।

 

सरकार में आते ही सीएम कमलनाथ ने ई-टेंडरिंग घोटाले की फाइल खुलवा दी थी। अब उस मामले में कार्रवाई तेज हो गई है। शिवराज सरकार में मंत्री रहे और बीजेपी के दिग्गज नेता नरोत्तम मिश्रा के सहयोगियों की गिरफ्तारी हुई है। ई-टेंडर घोटाले में पहले भी कई कार्रवाई हुई है। लेकिन पहली बार मंत्री के करीबियों पर गाज गिरी है। नरोत्तम बीजेपी के मध्यप्रदेश में एक तरीके से संकटमोचक भी हैं।



 

ईओडब्ल्यू कर रही जांच
ई-टेंडर घोटाले की जांच ईडब्ल्यू कर रही है। इस मामले में नरोत्तम मिश्रा के दो लोग वीरेंद्र पांडे और निर्मल अवस्थी को जेल भेजा गया है। शिवराज सिंह के सरकार में यह मंत्रालय नरोत्तम मिश्रा के पास ही था। हालांकि गिरफ्तारी के बाद ईओडब्ल्यू की तरफ से कहा गया कि इनके खिलाफ ई-टेंडर में टेपंरिंग के पुख्ता साक्ष्य मिले हैं।

तोड़फोड़' के मास्टर हैं नरोत्तम
हालांकि अपने सहयोगियों की गिरफ्तारी के बाद नरोत्तम मिश्रा ने कहा था कि चपरासी और बाबू जैसे लोगों को कमलनाथ की सरकार तंग कर रही है। ईओडब्ल्यू अगर मुझे नोटिस देता है तो मैं बैंड-बाजे के साथ जवाब देने जाऊंगा। हालांकि कहा जाता है कि शिवराज सिंह के शासन काल में नरोत्तम मिश्रा ने कांग्रेस को कई झटके दिए थे। उस वक्त के विधायक दल के उप नेता चौधरी राकेश सिंह और संजय पाठक को बीजेपी में लाने में नरोत्तम ने अहम भूमिका निभाई थी।

kailash vijayvargiya

 

कैलाश विजयवर्गीय भी निशाने पर
अब बीजेपी के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के महापौर कार्यकाल में इंदौर में हुए पेंशन घोटाले की जांच को कमलनाथ सरकार फिर से खोलने जा रही है। इसके लिए मुख्यमंत्री ने तीन मंत्रियों की कैबिनेट कमेटी घटित की है। यह कमेटी पेंशन घोटाले में गठित जस्टिस एनके जैन आयोग की रिपोर्ट का परीक्षण करेगी। आयोग ने जिन बिंदुओं पर चुप्पी साधी, उनकी जांच कराने की सिफारिश करेगी। सरकार ने यह रिपोर्ट विधानसभा के बजट सत्र में पेश करने से फिलहाल रोक ली है।

 

कैलाश विजयवर्गीय के बीजेपी के दिग्गज नेता हैं। शाह और मोदी का उन्हें करीबी बताया जाता है। लोकसभा चुनावों के दौरान मिशन बंगाल को भी कैलाश विजयवर्गीय ने अंजाम दिया था। कैलाश के रसूख को इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि बैटकांड में फंसे विधायक बेटे आकाश विजयवर्गीय पर पार्टी कोई कार्रवाई अभी तक नहीं कर सकी। ऐसे में कमलनाथ उन्हें कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं।

shivraj singh chauhan

 

व्यापमं की भी खुलेगी फाइल
इसके साथ ही मध्यप्रदेश व्यापमं घोटाले को लेकर सुर्खियों में रही है। कमलनाथ की सरकार फिर से व्यापमं से जुड़ी फाइलें खंगलवा रही हैं। ऐसे में अगर व्यापमं की जांच फिर से शुरू होती है तो कई और लोग फंस सकते हैं। इस बहाने कांग्रेस पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान को भी टारगेट कर सकती है।

कमलनाथ के भांजे हैं फंसे
हालांकि सत्ता के हिसाब से ये चीजें चलती रहती हैं। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मध्यप्रदेश में कमलनाथ के करीबियों के घर ईडी और इनकम टैक्स के छापे पड़े थे। इस मामले में उनके भांजे रतुल पुरी फंसे हुए हैं। ईडी अभी भी उनसे लगातार पूछताछ कर रही है। अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले में वे आरोपी हैं।



भोपाल। राजभवन में नवागत राज्यपाल लालजी टंडन का शपथ समारोह.. जहां कमलनाथ और उनकी सरकार के मंत्री के साथ कांग्रेस और भाजपा के दिग्गज नेताओं पर मीडिया का फोकस बनना तय था और ऐसा हुआ भी... इसके अलावा भाजपा कार्यालय में पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय की संगठन महामंत्री सुहास भगत से बंद कमरे में मुलाकात ने दिन में मीडिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया.. उधर विवादित अश्लील सीडी कांड में फंसे वरिष्ठ अधिकारी पीसी मीणा की  रवानगी  के साथ रात होते-होते यह खबर भी सामने आई कि मुख्यमंत्री कमलनाथ में मंत्रियों और सहयोगी वरिष्ठ नेताओं के साथ बदलते राजनीतिक घटनाक्रम पर विचार विमर्श किया... पिछले दिनों मध्यप्रदेश में भाजपा के 2 विधायकों के विधानसभा के फ्लोर पर कांग्रेस का समर्थन करने से गरमाई सियासत के बीच राजभवन से लेकर बीजेपी कार्यालय और बल्लभ भवन में मेल मुलाकात का महत्व यदि बढ़ गया.. खासतौर से कैलाश विजयवर्गीय के भोपाल पहुंचने के साथ कांग्रेस नेताओं के रिएक्शन ने कहीं ना कहीं यह सोचने को मजबूर किया कि कमलनाथ सरकार और कांग्रेस कैलाश को गंभीरता से ले रही  तो आखिर क्यों.. जिन्होंने जोधपुर से कर्नाटक के बाद मध्यप्रदेश में ऑपरेशन लोटस का इशारा किया और भोपाल पहुंचने के बाद अपने ही बयान से किनारा भी कर लिया.. तो सवाल खड़ा होना लाजमी  भाजपा के दो विधायकों से पार्टी के अंदर मची अफरा-तफरी के बीच दिल्ली से किसी राष्ट्रीय पदाधिकारी का प्रदेश भाजपा के संगठन मंत्री से बंद कमरे की मुलाकात आखिर कितनी मायने रखती है.. क्योंकि प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह खुद कुछ दिन पहले डैमेज कंट्रोल को मजबूर हुई बीजेपी की थाह लेकर दिल्ली लौट चुके.. तो पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान नई दिल्ली में जाकर जेपी नड्डा और बीएल सतीश से मुलाकात की थी.. इसके बाद से शिवराज हो या कैलाश विजयवर्गीय या फिर नरोत्तम मिश्रा लगातार कमलनाथ सरकार को अपने बयानों से अस्थिर करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे.. जिस पर कमलनाथ ने भले ही चुप्पी साध ली और लेकिन भ्रष्टाचार से जुड़े पुराने मामलों को बाहर निकालकर  नए सिरे से जांच की आड़ में उनके मंत्री और पार्टी के नेताओं की प्रतिक्रियाएं भी कम गौर करने लायक नहीं है...


मध्यप्रदेश में जब  कांग्रेस और बीजेपी में ठंड चुकी है  और उसके नेता आर-पार की लड़ाई  का संदेश दे रहे  तब लंबे अरसे बाग  सत्ता पक्ष विपक्ष के दिग्गज नेताओं का जमावड़ा राजभवन में देखने को मिला.. नई भूमिका में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालजी टंडन की बतौर राज्यपाल मध्यप्रदेश में मौजूदगी को सियासी गलियारों में  महत्वपूर्ण माना जा रहा .. क्योंकि इन दिनों मध्य प्रदेश चर्चा में है  तो कमल नाथ द्वारा  सीधे अमित शाह की भाजपा को दी गई चुनौती के कारण..  2 विधायकों का भाजपा से मोहभंग  करवाने के बाद कमलनाथ का भी मुख्यमंत्री रहते राष्ट्रीय राजनीति में  बढ़ चुका है .. वजह साफ है उन्होंने   भाजपा की कमजोर कड़ियों को उजागर कर प्रदेश भाजपा के नेताओं को भी एक्सपोज करने में कोई कसर नहीं छोड़ी .. शायद यही वजह है जो गेम प्लान बी को लेकर कमलनाथ सुर्खियों में है.. जिन्होंने एक बार फिर अपने सबसे भरोसेमंद मंत्रियों के साथ पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और सुरेश पचोरी जैसे नेताओं से संवाद बनाकर नई रणनीति के साथ नई चुनौतियों पर नजर लगा दी हैं.. मुख्यमंत्री कमलनाथ राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर कोई बड़ा फैसला आने वाले समय में ले सकते हैं.. एक दर्जन अतिरिक्त विधायकों के संपर्क में होने का दावा करने वाली कांग्रेस और उसकी सरकार की एक साथ कई मोर्चों पर सक्रियता के बीच भाजपा के अंदर खाने मची उठापटक को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है... खासतौर से जब ऑपरेशन लोटस को कर्नाटक के बाद मध्यप्रदेश में आगे बढ़ाने का दावा करने वाले भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय भोपाल पहुंचते हैं ..तो न सिर्फ कांग्रेस के कान खड़े होना स्वाभाविक है .. कांग्रेस मीडिया सेल की प्रमुख शोभा ओझा के रिएक्शन को पलटवार माने तो समझा जा सकता है कि कांग्रेस कैलाश को गंभीरता से ले रही है.. चाहे फिर ई टेंडरिंग घोटाले के बाद पेंशन घोटाले पर जांच कमेटी की बात ही क्यों न हो... वह बात और है कि कैलाश ने अपनी चिर परिचित शैली में स्पष्ट कर दिया कि वह कमलनाथ सरकार की गीदड़ धमकी से डरने वाले नहीं है ..और सही वक्त पर इसका जवाब दिया जाएगा.. बयान भले ही कैलाश बदलते रहे फिर भी उनकी आक्रामक शैली का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता कि उन्होंने एक बार फिर कमलनाथ जो मुख्यमंत्री के तौर पर 7 महीने गुजार चुके को व्यवसाई करार दिया.. कैलाश जब कांग्रेस की आंख की किरकिरी बन चुके तब इस दौरे के दौरान कैलाश विजयवर्गीय की प्रदेश भाजपा के संगठन महामंत्री सुहास भगत से वन टू वन चर्चा ने भाजपा के अंदर भी खलबली मचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी ..कैलाश के दौरे का मकसद भले ही नए राज्यपाल लालजी टंडन का शपथ समारोह था ..जिनमें वह अटल जी की छवि देखते  ..भाजपा के दो विधायक छिटकने के बाद कैलाश पहले राष्ट्रीय पदाधिकारी थे.. जिन्होंने सुहास भगत से बंद कमरे में मुलाकात की ..इस मुलाकात का कोई ब्यौरा इन दोनों में से किसी ने बाहर नहीं लाया ..तो भी आकलन और अनुमान कुछ सवाल जरूर खड़े करते हैं ..सवाल क्या यह मुलाकात सामान्य थी.. या फिर पश्चिम बंगाल के प्रभारी होने के बावजूद क्या राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का कोई संदेश लेकर राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय प्रदेश संगठन महामंत्री सुहास भगत से मिले थे... केंद्रीय नेतृत्व दिल्ली में आखिर मध्य प्रदेश भाजपा के बारे में क्या सोचती.. जिसके दो विधायक पाला बदलकर कांग्रेस के समर्थन में चले गए और मध्य प्रदेश के किसी जिम्मेदार नेता को इसकी भनक नहीं लगी... या फिर इस मुलाकात को पिछले दिनों विजयवाड़ा में हुई संघ की बैठक से जोड़ कर देखा जाए.. जिसमें रामलाल की भाजपा से विदाई और संघ में वापसी हो गई थी.. जो मध्य प्रदेश के प्रभारी भी थे..  नए संगठन महामंत्री का दायित्व बीएल संतोष को सौंप दिया गया..  सवाल यह भी खड़ा होता है क्या कैलाश विजयवर्गीय सुहास भगत से मध्य प्रदेश के बनते बिगड़ते समीकरणों को लेकर कोई फीडबैक लेकर वापस दिल्ली गए... यह सवाल इसलिए क्योंकि इस दौरे के दौरान कैलाश विजयवर्गीय मीडिया से खुलकर मिले और हर सवाल का बेबाकी से जवाब दिया ..चाहे फिर वह 2 विधायकों से जुड़ा मामला हो या फिर पेंशन घोटाला और आकाश विजयवर्गीय से जुड़ा ही सवाल क्यों ना हो.. मीडिया से चर्चा के दौरान एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था कि यदि आप कोई सुझाव देना चाहे तो उससे वह राष्ट्रीय नेतृत्व को जरूर अवगत करा देंगे.. तो फिर सवाल क्या कैलाश और सुहास की इस मुलाकात को 1 अगस्त से शुरू होने वाले सक्रिय सदस्यता अभियान से आगे संगठन चुनाव और उसकी नई जमावट से जोड़कर देखा जा सकता है.. वह बात और है कि कैलाश ने एक बार फिर खुद को मिशन पश्चिम बंगाल तक सीमित रहने की बात कही है...  दूसरी ओर लगातार कमलनाथ सरकार को कभी भी गिरा देने या फिर आपरेशन लोटस के बहाने मध्यप्रदेश में अपनी प्रभावी मौजूदगी दर्ज करा रहे ..जिस तरह उन्होंने राहुल गांधी से लेकर प्रियंका गांधी पर हमला करना जारी रखा या फिर कमलनाथ सरकार को चेतावनी दी कि वो कांग्रेस की गीदड़ भभकी से डरने वाले..  संदेश क्या यह माना जाए  कि नजर उनकी भी मध्य प्रदेश पर लग चुकी है ..जो अच्छी तरह जानते हैं कि विपक्ष में रहते भाजपा संगठन से जुड़कर ही अपनी लाइन बड़ी की जा सकती है.. जिनका नाम पहले भी कई बार प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के तौर पर मीडिया की सुर्खियां बनता रहा है.. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि नारायण त्रिपाठी और शरद कोल को लेकर भाजपा नए सिरे से अपनी रणनीति बनाने में जुट गई है खुद कैलाश विजयवर्गीय के बयान पर गौर किया जाए तो यह जिम्मेदारी उन्हें नहीं सौंपी गई ..तो क्या खुद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष या फिर उन्होंने नए सिरे से घर वापसी की मुहिम की जिम्मेदारी पार्टी में किसी को सौंपी है ..इन दोनों विधायकों ने  पिछला विधानसभा चुनाव भाजपा के चिन्ह पर लड़ा और अब उन्होंने कांग्रेस सरकार को समर्थन दे दिया तो दूसरी ओर मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भले ही ऑपरेशन कमल पार्ट 2 को लेकर कोई बड़ा दावा भले नहीं ठोका.. लेकिन उनके मंत्री और संगठन के नेता जल्द कुछ और विधायकों के कांग्रेस में शामिल किए जाने की भविष्यवाणी कर रहे हैं ..इसलिए यदि प्रदेश भाजपा की कमजोर कड़ियों पर गौर किया जाए तो राष्ट्रीय नेतृत्व आने वाले समय में कुछ चौंकाने वाले फैसले ले सकता है... खासतौर से यदि 1 अगस्त की प्रदेश भाजपा द्वारा बुलाई गई बैठक में यदि राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा का आना होता है तो समझा जा सकता कि अमित शाह की भी पैनी नजर मध्य प्रदेश पर लग चुकी है..




भोपाल. एमपी में कांग्रेस-भाजपा के बीच चल रही विधायकों के उसके पाले में होने के दावे-प्रतिदावे के बीच भाजपा के एक विधायक ने कांग्रेस की कमलनाथ सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि कांग्रेस सरकार ने उसे मंत्री पद व करोड़ों रुपए का ऑफर दिया था, लेकिन वे कांग्रेस के प्रलोभन में नहीं आये, वे बीजेपी में ही ठीक हैं. 

मध्य प्रदेश के एक बीजेपी विधायक ने कांग्रेस पर विधायकों की खरीद-फरोख्त का आरोप लगाया है. श्योपुर जिले की विजयपुर विधानसभा सीट से बीजेपी के विधायक सीताराम आदिवासी ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस ने उन्हें खरीदने की कोशिश की.

मंत्री पद और करोड़ों का ऑफर दिया गया

आदिवासी ने कांग्रेस के नेताओं पर हॉर्स ट्रेडिंग का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस के बड़े से लेकर छोटे नेता तक उन्हें बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में आने का प्रलोभन दे रहे हैं. इसके लिए उन्हें करोड़ों रुपए से लेकर सरकार में मंत्री पद तक का ऑफर दिया जा रहा है. सीताराम आदिवासी ने कांग्रेस विधायक नारायण त्रिपाठी और ब्यौहारी से विधायक शरद कोल पर निशाना साधते हुए दोनों को गद्दार तक कह दिया. बता दें कि ये दोनों वो ही विधायक हैं जिन्होंने पिछले दिनों विधानसभा में दंड विधि संशोधन विधेयक पर कमलनाथ सरकार के समर्थन में क्रॉस वोटिंग की थी.

मैं भाजपा में रहकर बहुत खुश हूं

कांग्रेस पर हॉर्स ट्रेडिंग का आरोप लगाने वाले विधायक सीताराम ने खुद के कांग्रेस में जाने की अटकलों पर कहा कि वो बीजेपी में खुश हैं और उन्हें अपनी पार्टी और नेताओं से किसी भी तरह की कोई भी नाराजगी नहीं है.

एमपी की राजनीति में मची हलचल

सीताराम आदिवासी के आरोपों से सूबे की राजनीति में खलबली मच गई है. हाल ही में विधानसभा में दंड विधि संशोधन विधेयक पर बीजेपी के 2 विधायकों के कांग्रेस के पाले में जाने के बाद बीजेपी हक्का-बक्का है. वहीं कांग्रेस ने बीजेपी के खेमे में सेंध लगाकर खुद को मजबूत बना लिया. उसके बाद बीजेपी नेताओं ने कांग्रेस सरकार पर विधायकों को खरीदने के आरोप लगाए थे. उसके बाद भी कांग्रेस ने दावा किया था कि बीजेपी के और भी कई विधायक उसके संपर्क में हैं.

मध्यप्रदेश में नए पदोन्नति नियमों का मंत्री ने मांगा मसौदा


सुप्रीम कोर्ट में प्रमोशन में आरक्षण मामले में जल्द सुनवाई के लिए सरकार की ओर से आवेदन दिया जाएगा।

भोपाल (मंथन न्यूज)। विधानसभा में पदोन्नति में आरक्षण का मुद्दा उठने के बाद कमलनाथ सरकार हरकत में आ गई है। सरकार पदोन्नति के लिए नए नियम लाएगी। इसके लिए सामान्य प्रशासन मंत्री डॉ. गोविंद सिंह ने विभाग से पदोन्नति के नए नियमों का मसौदा मांग लिया है।

वहीं, सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नति में आरक्षण प्रकरण के लिए तैनात संपर्क अधिकारी प्रमुख अभियंता आरके मेहरा को बदला जाएगा। उनकी जगह आवासीय आयुक्त कार्यालय नई दिल्ली में पदस्थ अफसर को जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। उधर, सुप्रीम कोर्ट में प्रकरण की जल्द सुनवाई और सशर्त पदोन्नति की अनुमति देने जल्द ही सरकार की ओर से आवेदन लगाया जाएगा। विभागीय अधिकारियों ने मंत्री की ओर से फाइल भेजे जाने की पुष्टि की है।

पदोन्नति नहीं होने को लेकर कर्मचारियों में फैले रोष को दूर करने के लिए सरकार जब तक सुप्रीम कोर्ट अंतिम फैसला नहीं सुना देता, तब तक सशर्त पदोन्नति देने की पक्षधर है। सामान्य प्रशासन विभाग ने पिछले दिनों पदोन्नति के नए नियमों के मसौदे की फाइल अनुमोदन के लिए मंत्री डॉ. गोविंद सिंह के पास भेजी थी, लेकिन इसमें मसौदा नहीं था। इस पर मंत्री ने फाइल पर ही आदेश दिए कि मसौदे को अनुमोदन के लिए प्रस्तुत किया जाए। वहीं, मामले के लिए तैनात संपर्क अधिकारी को बदला जाए। नई दिल्ली में पदस्थ किसी अफसर को यह जिम्मेदारी सौंपी जाए, ताकि वे लगातार इस मामले को देख सकें।

बताया जा रहा है कि आवासीय आयुक्त कार्यालय के अपर आवासीय आयुक्त प्रकाश उन्हाले को संपर्क अधिकारी बनाया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट में प्रकरण की जल्द सुनवाई को लेकर भी प्रदेश की स्टैंडिंग काउंसिल (वरिष्ठ अधिवक्ताओं के पैनल) के माध्यम से आवेदन लगाया जाएगा। इसमें प्रदेश में पदोन्नति नहीं होने की वजह से कर्मचारियों की कार्यक्षमता पर पड़ रहे प्रभाव को आधार बनाया जाएगा। साथ ही यह बात भी रखी जाएगी कि जब तक प्रकरण का अंतिम निर्णय नहीं हो जाता, तब तक पदोन्नति सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अधीन रखते हुए सशर्त दी जाएगी।

वरिष्ठ वकीलों से तैयार करवाया मसौदा

सूत्रों के मुताबिक शिवराज सरकार के वक्त पदोन्नति नियम 2017 का मसौदा सुप्रीम कोर्ट में मध्यप्रदेश की स्टैंडिंग काउंसिल की देखरेख में तैयार कराया गया था। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में एम. नागराज के मामले में पदोन्नति में आरक्षण को लेकर जो दिशा-निर्देश दिए हैं, उन्हें शामिल किया गया है। प्रारूप को सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को दिखाया जा चुका है। पदोन्नति में अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के लिए आरक्षण को बरकरार रखने की बात कही गई है।

तीन साल से बंद है पदोन्नति

प्रदेश में पदोन्नति बीते तीन साल यानी मई 2016 से बंद है। हाईकोर्ट जबलपुर ने पदोन्नति नियम 2002 के आरक्षण से जुड़े बिंदुओं को अवैधानिक बताते हुए निरस्त कर दिया था। इस फैसले के खिलाफ शिवराज सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई। कोर्ट ने यथास्थिति बरकरार रखने के निर्देश दिए। तब से ही पदोन्नतियां रुकी हुई हैं। कर्मचारियों का दावा है कि पदोन्नति के बिना 25 हजार से ज्यादा अधिकारी-कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं।

Triple Talaq Bill In Rajya Sabha: तीन तलाक बिल 25 जुलाई को लोकसभा में पास हुआ था। अब राज्यसभा ने भी पास कर दिया है।

नई दिल्ली। तीन तलाक बिल पर मोदी सरकार को बहुत बड़ी कामयाबी मिली है। लोकसभा के बाद यह बिल राज्यसभा में भी पास हो गया है। इस मामले में सरकार को कई विपक्षी दलों का साथ मिला। अब तीन बार तलाक बोलकर तलाक देना अपराध हो गया है। वोटिंग के दौरान बिल के पक्ष में 99 और विपक्ष में 84 वोट मिले। पढ़िए अपडेट -

इससे पहले 4 घंटे चली बहस के बाद इस मुद्दे पर भी वोटिंग हुई कि इस बिल को सेलेक्ट कमेटी को भेजा जाए या नहीं? सरकार विपक्ष में सेंध लगाने में कामयाब रही। बीएसपी और टीआरएस वोटिंग के समय गायब रहे। कई अन्य सदस्य भी मौजूद नहीं थे। इस तरह सेलेक्ट कमेटी को भेजने के खिलाफ 100 वोट मिले, जबकि इसके पक्ष में 84 वोट ही गिरे। इस तरह वोटिंग का नतीजा यह रहा कि यह बिल सेलेक्ट कमेटी को नहीं भेजा जाएगा। भाजपा की सहयोगी पार्टी जेडीयू ने वॉकआउट कर दिया। पार्टी का कहना है कि वह न तो बिल के समर्थन में वोट करेगी, ना ही विरोध करेगी। वहीं AIADMK ने बिल को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजने की वकालत की। YSR कांग्रेस बिल के खिलाफ वोट करेगी।

सेलेक्ट कमेटी में भेजने का प्रस्ताव गिरने के बाद कांग्रेस सदस्य गुलामनबी आजाद ने कहा कि सरकार ने विपक्ष के दो प्रस्ताव नहीं माने हैं, इसलिए कांग्रेस बिल के खिलाफ वोट करेगी।

राज्यसभा सभापति वेंकैया नायडू ने बटन दबाकर वोटिंग करने के बजाए पर्चियां बंटवाई। इसका कारण यह है कि राज्यसभा में कुछ सदस्य नए आए हैं, जिन्हें अब तक सीट नहीं मिली है। वे किसी भी सीट पर बैठकर वोटिंग नहीं कर सकते हैं। इसलिए पर्चियां बांटी गईं और सदस्यों को हां या नां लिखने को कहा गया।

शरद पवार, राम जेठमलानी, केटीएस तुलसी और प्रफुल्ल पटेल सदन में मौजूद नहीं रहे। इसलिए बहुमत का आंकड़ा क्या रहेगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। खराब स्वास्थ्य के कारण अरुण जेटली भी सदन में नहीं हैं।

इससे पहले लोकसभा में तीन तलाक बिल पास होने के बाद सरकार ने मंगलवार को इसे राज्यसभा में पेश किया।। इसके लिए भाजपा और कांग्रेस ने अपने सदस्यों को सदन में मौजूद रहने को कहा गया था, इसके लिए व्हीप जारी किया गया था। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बिल दोपहर 12 बजे सदन में पेश किया। इस बिल पर सदन में चर्चा शुरू हुई, इसके लिए 4 घंटे का समय तय किया गया।

25 जुलाई को यह बिल लोकसभा में पास हुआ था। तब बिल के पक्ष में 303 वोट पड़े थे, वहीं विपक्ष में इस बिल के खिलाफ 82 वोट डले थे। जेडीयू और टीएमसी बहस से अलग रहे थे। इन दलों ने बहिष्‍कार कर दिया था। बीजेडी ने बिल के पक्ष में वोट किया। टीआरएस और वायएसआर कांग्रेस ने बिल के विपक्ष में वोट किया।

हाल ही में लोकसभा में इस बिल पर चर्चा करते हुए केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद 24 जुलाई 2019 तक तीन तलाक के 345 केस सामने आए हैं। मैं अपील करता हूं कि यह मुद्दा धर्म, सियासत, पूजा का नहीं बल्कि नारी सम्मान का है। हमने उन तीन आपत्तियों को इस बिल में एड्रेस किया है जिन्हें लेकर सदन में विपक्ष ने मांग उठाई थी।


सत्ता पक्ष खुश है। लोकसभा में कामकाज रिकार्ड स्तर पर चल रहा है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला अपने कौशल से सदन चला रहे हैं। राज्यसभा में भी कोई परेशानी नहीं है। भले ही सरकार के पास अभी राज्यसभा में बहुमत में कुछ सांसद कम हैं, लेकिन जो बिल चाह रही है, पास हो जा रहे हैं। सरकार को सूचना अधिकार संशोधन विधेयक के लोकसभा में पारित होने के बाद राज्यसभा में इसके पारित होने को लेकर कोई चिंता नहीं थी। तीन तलाक बिल पर भी सरकार निश्चिंत है। जबकि विपक्ष राज्यसभा में सरकार को घेरने की जोरदार रणनीति बना रहा था। 

बताते हैं विपक्ष की चाल देखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने मोर्चा संभाल लिया था। जनता दल (बीजू) के नेता, उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से प्रधानमंत्री की पुरानी केमिस्ट्री है। लिहाजा प्रधानमंत्री ने फोन घुमाया और उधर से सफलता लेकर आए। इसके बाद सत्ता पक्ष ने सबको साध लिया। विपक्षी एकता धरी की धरी रह गई। इसके बाद विपक्ष ने बिल को सेलेक्ट कमेटी को भेजने का खूब दबाव बनाया, लेकिन अंत में निराशा ही हाथ लगी।

मध्यप्रदेश में भाजपा की नजर

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह मध्यप्रदेश भाजपा अध्यक्ष राकेश सिंह, भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को राज्य में भाजपा के कील कांटे दुरुस्त करने की हिदायत दे चुके हैं। शाह विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव के लगातार एक के बाद एक बयान से भी नाराज हैं। भाजपा के कार्यवाहक अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने साफ कह दिया है कि मध्यप्रदेश में जो चल रहा है, उस पर उनकी निगाह है। भाजपा महासचिव कैलाश विजयावर्गीज को मध्यप्रदेश में दमदार भाजपा सरकार चाहिए। 

खबर है कि भाजपा की इस तरह की मंशा से राज्य के मुख्यमंत्री कमलनाथ पूरी तरह से वाकिफ हैं। कमलनाथ के सबसे बड़े सलाहकार दिग्विजय सिंह हैं। दिग्विजय सिंह का पूरे मध्यप्रदेश के नेताओं में एक अलग जमठा है। बताते हैं कमलनाथ ने जहां भविष्य को सहेजना शुरू कर दिया है, वहीं भाजपा के नेता दंड विधि संशोधन विधेयक में सरकार का साथ देने वाले अपने दो विधायकों से पैदा हुई टीस का जवाब देने की तैयारी कर रही है। शिवराज सिंह चौहान ने भी बयान देकर गर्मी बढ़ा दी है। देखिए आगे क्या होता है?

तिवारी की पीड़ा : अवैध है लोकसभा, राज्यसभा टीवी

पूर्व सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी का मानना है कि लोकसभा और राज्यसभा टीवी दोनों अवैध तरीके से चल रहे हैं। तिवारी जब मंत्री थे तो उन्होंने लोकसभा और राज्यसभा टीवी को इसका तत्काल प्रसारण बंद करने के लिए पत्र भी लिख दिया था। तिवारी बड़े चाव से बताते हैं कि इस टीवी चैनल के पास प्रसारण का कोई लाइसेंस नहीं है। तिवारी कहते हैं कि यह गलत है, वह लेकिन तिवारी अभी यह बताने के लिए तैयार नहीं है कि उनके नोटिस देने के बाद आगे क्या हुआ? 

इसके बारे में तिवारी का कहना है कि अपनी किताब में इसका खुलासा करेंगे। अब तिवारी को कौन बताए कि आपको मंत्री पद से हटे ही कोई सवा पांच-छह साल हो गए। इतना ही नहीं तिवारी के मंत्री रहते भी दोनों चैनल न केवल चले बल्कि पिछले कई सालों में लाखों-करोड़ों का वारा न्यारा भी हो गया। इतना ही नहीं राज्यसभा चैनल को पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने यूपीए-टू कार्यकाल में शुरू कराया था।


कौन होते हैं राहुल गांधी?


कांग्रेस पार्टी के एक पूर्व महासचिव की पीड़ा सुनिए। वह कहते हैं कि राहुल गांधी ट्विटर पर बम फोड़कर पार्टी चला रहे हैं। आखिर यह स्थिति कब तक चलेगी? कांग्रेसी नेता ने यह सवाल शशि थरूर के बयान के बाद उठाया है। शशि थरूर ने कांग्रेस पार्टी में चल रही अनिश्चितता को लेकर बयान दिया है। वहीं कांग्रेस एक अन्य बड़े नेता ने खीझ जाहिर करते हुए कहा कि राहुल अध्यक्ष पद नहीं संभालना चाहते तो न संभालें। पार्टी खत्म नहीं हो जाएगी। चलेगी। 

लेकिन वह कौन होते हैं यह कहने वाले कि प्रियंका गांधी या गांधी परिवार का कोई कांग्रेस अध्यक्ष न बने। पार्टी के नेता का कहना है कि राहुल केवल अपनी निजी राय दे सकते हैं। रहा सवाल पार्टी के भविष्य के नेता का तो यह निर्णय सीडब्ल्यूसी लेगी। जो सीडब्ल्यूसी निर्णय लेगी, उसे पार्टी के नेताओं को मानना होगा। बताते हैं सात अगस्त को संसद का सत्र समाप्त होने के बाद पार्टी अपने भविष्य का निर्णय कर लेगी।

अमित शाह ने बनाया येदियुरप्पा को सीएम

भाजपा अध्यक्ष और गृहमंत्री अमित शाह ने बीएस येदियुरप्पा के राज्य का मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ कर दिया। बताते हैं कर्नाटक में एचडी कुमारस्वामी की सरकार गिरने के बाद भाजपा किसी जल्दबाजी में नहीं थी। पार्टी के कार्यवाहक अध्यक्ष जेपी नड्डा भी खास नतीजे पर नहीं पहुंच पा रहे थे। खतरे दो थे। पहला यह कि विधानसभा अध्यक्ष के आर रमेश कुमार पद पर बने थे और 14 विधायकों के भविष्य का निर्णय विधानसभा अध्यक्ष के हाथ में था। हालांकि येदियुरप्पा कमर कसकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के लिए बेताब थे। 

बताते हैं संगठन मंत्री बीएल संतोष भी बहुत जल्दबाजी के पक्ष में नहीं थे, लेकिन शाह ने पूरे प्रकरण को सभी तरह से समझने के बाद आनन-फानन में मंजूरी दे दी। बताते हैं केन्द्रीय नेतृत्व की तरफ से येदियुरप्पा को न केवल सरकार बनाने का दावा पेश करने को कहा गया बल्कि यथा शीघ्र विश्वास मत हासिल करने की भी सलाह दी गई। इस तरह से येदियुरप्पा राज्य में भाजपा के चौथी बार मुख्यमंत्री बन गए हैं। हालांकि अभी उनकी चुनौतियां बनी हुई है। उन्हें न केवल राज्य में खुद को अच्छा मुख्यमंत्री साबित करना है, बल्कि विधानसभा में बहुमत को लेकर भी सचेत रहना है। 

प्रियंका गांधी को दो कमान

राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है तो कांग्रेसी भी नई मांग को लेकर खड़े हो गए हैं। कई प्रदेशों के नेताओं राहुल गांधी के स्थान पर प्रियंका गांधी को अध्यक्ष बनाने की मांग तेज कर दी है। यूपी के कांग्रेस के एक नेता ने तो बाकायदा पार्टी को चिट्ठी भी लिखी है। चिट्ठी में लिखा है कि 2022 के विधानसभा चुनाव से करीब तीन साल पहले प्रियंका के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने पर राज्य में कांग्रेस सरकार भी बना सकती है। कांग्रेस के नेताओं की मांग पार्टी के मौजूदा सीडब्ल्यूसी के सदस्यों में कई को रास आ रही है। दरअसल कांग्रेस पार्टी के भीतर कई तरह की चर्चा चल रही है। 

इस चर्चा में पार्टी के नेता आपस में अध्यक्ष-अध्यक्ष का खेल खेल रहे हैं। बताते हैं इस खेल के चलते ही न तो सीडब्ल्यूसी की बैठक शेड्यूल हो पा रही है और न ही आगे की दशा और दिशा का निर्धारण हो पा रहा है। अभी स्थिति यह है कि लोकसभा और राज्यसभा में पार्टी के नेता महत्वपूर्ण निर्णय के लिए यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी की राय ले रहे हैं। प्रियंका गांधी वाड्रा राहुल गांधी से सलाह मशविरा या निर्देश लेकर अपना राजनीतिक काम कर रही हैं। शेष नेता इंतजार में दिन बिता रहे हैं। 

बहन ने नहीं दी माफी, आजम पड़ गए अकेले


लोकसभा में समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान ने सभापति के आसन पर बैठीं भाजपा सांसद रमा देवी पर टिप्पणी करके नया अनुभव पाया। आजम खान का साथ पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और राज्यसभा सांसद पत्नी तंजीम फातिमा ने ही दिया। जिस दिन आजम ने टिप्पणी की, किसी तरह वॉक आउट करके इज्जत बचा आए। लेकिन इसके बाद भाजपा तथा अन्य दलों की महिला सांसदों की एकजुटता ने मामले को नया रंग दे दिया। टिप्पणी के दूसरे दिन तक आजम माफी न मांगने की जिद पर अड़े थे। इसके लिए आजम ने पूरी कोशिश भी की। उन्हें उम्मीद थी कि रमा देवी को बार-बार बहन कहने का असर पड़ेगा। 

अन्य दल के नेता सहयोग देंगे, लेकिन आजम खान की मुसीबत तब बढ़ गई, जब लोकसभा अध्यक्ष द्वारा बुलाई बैठक में अधिकांश दलों के नेताओं ने भी आजम के माफी मांगने पर जोर दिया। बताते हैं अंत में एक वरिष्ठ नेता ने आजम खान को समझाया। उन्हें (आजम) एहसास कराया गया कि वह यूपी में समाजवादी पार्टी का बड़ा अल्पसंख्यक चेहरा हैं। उनकी टिप्पणी भी तीन तलाक बिल पर अपना पक्ष रखने के दौरान हुई है। उन्होंने सभापति के आसन पर बैठीं रमादेवी (महिला) को लेकर टिप्पणी की है। इसलिए भलाई इसी में है कि माफी मांगकर मामले को रफा-दफा करें। लिहाजा पीठ न दिखाने वाले आजम को मजबूरी में इसके लिए भी तैयार होना पड़ा।

कर्नाटक का रण

भाजपा ने कर्नाटक का रण जीत लिया है। अब पार्टी को उम्मीद है कि सरकार भी चलेगी। पार्टी के नेताओं की यह उम्मीद यूं ही नहीं है। सूत्र बताते हैं कि तमाम कांग्रेस के नेता और जद (एस) के एचडी कुमारस्वामी पर खुद तमाम तरह के आरोप हैं। कर्नाटक में पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के बाद सबसे पावरफुल डीके शिवकुमार हैं। बताते हैं शिवकुमार को लेकर भी कई सवाल हैं। इसलिए येदियुरप्पा सरकार को अब ऐसे नेताओं से कोई खतरा नहीं है। खतरा न होने का एक कारण और है। 

विधानसभा अध्यक्ष के आर रमेश कुमार ने पद से इस्तीफा दे दिया है। राज्य में राज्यपाल भी भाजपा से हैं। केन्द्र में सरकार भी भाजपा की है। इसलिए अब कोई डर नहीं है। मीडिया लॉबी तो यहां तक मानकर चल रही है कि जल्द ही कांग्रेस और जद( एस) गठबंधन टूटने की घोषणा होने वाली है। यह घोषणा पहले जद (एस) करेगा। इसका मतलब यह हुआ कि अकेले कांग्रेस खाक भाजपा का मुकाबला करेगी?



भोपाल। विधानसभा में संशोधन विधेयक पर अचानक मत विभाजन के जरिए कमलनाथ सरकार के शक्ति परीक्षण को भाजपा चुनौती देगी। नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने कहा कि हम इस संबंध में संविधान विशेषज्ञों से राय-मशविरा कर रहे हैं। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष डॉ. सीतासरन शर्मा को इस मामले में अध्ययन कर उचित फोरम पर चर्चा करने की जवाबदारी सौंपी गई है। डॉ.शर्मा भी इस पूरी कार्रवाई को विधानसभा के फ्लोर का दुरुपयोग मानते हैं।

राजभवन में राज्यपाल के शपथ समारोह के बाद मीडिया से चर्चा करते हुए नेता प्रतिपक्ष भार्गव ने यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि बहुमत ही साबित करना था तो कर्नाटक विधानसभा की तर्ज पर भौतिक रूप से गणना की जानी चाहिए थी। भार्गव ने यह भी बताया कि भाजपा ने तो मत विभाजन मांगा भी नहीं था बल्कि विधेयक का समर्थन किया था। यही कारण है कि भाजपा ने अपने सदस्यों के लिए व्हिप भी जारी नहीं किया था।

पूर्व विधानसभा अध्यक्ष डॉ सीतासरन शर्मा  से हुई चर्चा में कहा कि उस दिन विधानसभा में गलत हुआ। यह विधानसभा के फ्लोर का दुरुपयोग है, सरकार अल्पमत की है यह बात सभी जानते हैं। बहुमत सिद्ध करने विधेयक को बहाना बनाकर समर्थक दल से मत विभाजन की मांग कराना उचित नहीं कहा जा सकता।

शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय शिवपुरी में पदस्थ वाणिज्य विषय के अतिथि विद्वान डॉ रामजी दास राठौर ने बताया कि छात्र हित को ध्यान में रखते हुए शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय शिवपुरी में 1 अगस्त 2019 से प्रातः 10:00 बजे से वाणिज्य विषय की कक्षाएं प्रातः 9:55 पर राष्ट्रगान एवं वंदे मातरम के साथ प्रारंभ की जा रही है'! इन कक्षाओं में प्रतिदिन आपको अध्ययन कराया जाएगा! अतः सभी विद्यार्थी इन कक्षाओं में उपस्थित रहे'! जीवाजी विश्वविद्यालय द्वारा आज दिनांक तक परीक्षा परिणाम घोषित नहीं किया गया है, इस कारण प्रवेश प्रक्रिया में विलंब हो रहा है! अतः इन सब परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए विद्यार्थियों का शैक्षणिक सत्र में अनावश्यक नुकसान न हो डॉ रामजी दास राठौर द्वारा बीकॉम प्रथम वर्ष द्वितीय वर्ष तृतीय वर्ष एमकॉम प्रथम सेमेस्टर एवं एमकॉम तृतीय सेमेस्टर का व्यक्तिगत टाइम टेबल जारी कर दिया गया है ! इस टाइम टेबल के अनुसार महाविद्यालय में कक्षाएं प्रारंभ की जा रही हैं! अतः सभी विद्यार्थी इन कक्षाओं में अनिवार्य रूप से उपस्थित रहे'! इन कक्षाओं के दौरान आप की उपस्थिति पीरियड प्रारंभ होने के साथ ही प्रतिदिन ली जाएगी तथा सभी विद्यार्थी इस बात का विशेष ध्यान रखें कि मध्य प्रदेश विश्वविद्यालय अधिनियम 1963 के अधीन बनाए गए अध्यादेश क्रमांक छह के अनुसार महाविद्यालय में अध्ययनरत समस्त नियमित विद्यार्थियों को 75% उपस्थिति बनाए रखना अनिवार्य है ! अन्यथा की स्थिति में प्रवेश निरस्त से लेकर अन्य संवैधानिक कार्यवाही की जा सकती हैं, जिसके लिए विद्यार्थी स्वयं जिम्मेदार रहेंगे! कक्षाओं के दौरान ही प्रवेश प्रक्रिया समयानुसार जारी होने पर आपके प्रवेश सुनिश्चित करा दिए जाएंगे !

मुंबई: कर्नाटक और गोवा के बाद क्या अब महाराष्ट्र कांग्रेस में भी टूट होने वाली है. हालही कर्नाटक के एक दर्जन से ज्यादा विधायकों ने सरकार से बगावत कर ली थी. इसके बाद कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार गिर गई. वहीं दूसरी ओर गोवा में 10 कांग्रेस विधायकों ने पाला बदलकर भाजपा में शामिल हो गए. ऐसे सवाल इसलिए उठ रहे हैं, क्योंकि भाजपा के वरिष्ठ नेता एवं महाराष्ट्र के जल संसाधन मंत्री गिरीश महाजन ने रविवार को दावा किया कि इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले अपना पाला बदलने के लिए कांग्रेस और राकांपा के कम से कम 50 विधायक भाजपा के संपर्क में हैं. महाजन का यह बयान ऐसे वक्त आया है, जब शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के कई नेता हाल ही में पार्टी छोड़ चुके हैं. 

महाजन ने कहा, ‘कांग्रेस और राकांपा के करीब 50 विधायक भाजपा के संपर्क में हैं. राकांपा की वरिष्ठ नेता चित्रा वाघ ने एक महीने पहले भाजपा में शामिल होने की इच्छा जताते हुए दावा किया था कि उनका अपनी मूल पार्टी (राकांपा) में कोई भविष्य नहीं है. उन्होंने कहा, ‘विधायक अनुरोध कर रहे हैं कि वे विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल होना चाहते हैं... कांग्रेस लड़खड़ा रही है और अगले कुछ हफ्तों में, राकांपा कमजोर दिखेगी.'


महाजन ने शरद पवार के इन आरोपों को भी खारिज कर दिया कि भाजपा कांग्रेस और राकांपा को हराने के लिए उनके नेताओं के खिलाफ सरकारी एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है.

बता दें, महाराष्ट्र में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) को एक और झटका देते हुए अकोला से विधायक वैभव पिचड ने शनिवार को घोषणा की थी कि वह सत्ताधारी भाजपा में शामिल होने जा रहे हैं. वैभव एनसीपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व राज्यमंत्री मधुकर पिचड के बेटे हैं. दो दिन पहले राकांपा की मुंबई इकाई के प्रमुख सचिन अहिर ने भी सत्ताधारी गठबंधन दल शिवसेना का दामन थाम लिया था.


वैभव पिचड ने बताया कि उन्होंने अहमदनगर के अकोला में शनिवार को अपने समर्थकों की एक बैठक बुलाकर उनकी राय जानने की कोशिश की थी. उन्होंने कहा कि अधिकतर समर्थक चाहते हैं कि वह भाजपा में शामिल हो जाएं. पिचड ने कहा कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने उन्हें आश्वासन दिया कि उन्हें क्षेत्र की समस्याओं को दूर करने में हर तरह की मदद दी जाएगी. उन्होंने कहा, 'बहुत जल्द मैं औपचारिक रूप से भाजपा में शामिल हो जाउंगा.'


नई दिल्ली:


मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार ने कई महत्वपूर्ण फैसले लिए, मगर उन फैसलों का असर जमीन पर होता नजर नहीं आ रहा था. इसकी वजह प्रशासनिक मशीनरी का साथ न मिलना मानी जा रही है. प्रशासनिक अमले सरकार की स्थिरता को लेकर आश्वस्त नहीं थे. मगर कई दलों के समर्थन से चल रही अल्पमत सरकार ने जब विधानसभा में अपनी ताकत साबित कर दी, उसके बाद राज्य की सुस्त पड़ी सरकारी मशीनरी के कामकाज में रफ्तार आने की संभावना बढ़ गई है. 


कमलनाथ के नेतृत्ववाली कांग्रेस सरकार सात माह से ज्यादा का कार्यकाल पूरा कर चुकी है, मगर सरकार बनने के बाद से उसके भविष्य को लेकर सवाल लगातार उठाए जाते रहे हैं. विपक्ष यह प्रचारित करने में लगा रहा कि यह सरकार ज्यादा दिन चलनेवाली नहीं है. प्रशासनिक अमला भी यही मानकर चल रहा था कि सरकार कभी भी गिर सकती है. इसलिए सरकारी मशीनरी सरकार को भाव नहीं दे रही थी. विधानसभा में 24 जुलाई को कांग्रेस के एक विधेयक पर मत विभाजन में भाजपा के दो विधायकों का समर्थन मिल जाने के बाद अब सरकार के मंत्री भी यह मानकर चल रहे हैं कि बेलगाम हो चली नौकरशाही के रवैए में बदलाव दिखेगा.

राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी का दावा है कि विधानसभा में सरकार की ताकत दिखने के बाद नौकरशाहों को समझ में आ गया है कि यह सरकार चलेगी और अपना कार्यकाल पूरा करेगी. प्रशासनिक अधिकारी भी मानते हैं कि सरकार पर भरोसा बढ़ने से नौकरशाही के रवैए में बदलाव जरूर आएगा. सरकार की योजनाओं पर शुरू काम अब रफ्तार पकड़ेगा. पूर्व मुख्य सचिव निर्मला बुच का मानना है कि नौकरशाही हमेशा राजनीतिक हालात पर नजर रखता है. जब सरकार बदलती है, तब उसका असर नौकरशाही पर भी पड़ता है. जैसे-जैसे भरोसा बढ़ता है, हालात सामान्य होने लगते हैं और सभी लोग पहले की तरह अपने काम में लग जाते हैं.

एक अधिकारी ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा, 'हमारे पास फाइलें कई-कई दिन तक पड़ी रहती थीं, क्योंकि हमेशा इस बात की आशंका रहती थी कि यह सरकार अब गई, तब गई. पूरी सरकारी मशीनरी ही पसोपेश में रहती थी, साथ ही पूर्ववर्ती सरकार से करीबी नाता रखने वाले अफसर वर्तमान सरकार को सहयोग देने के लिए तैयार नहीं थे. विधानसभा में मत विभाजन के दौरान सरकार की मजबूती दिखने के बाद अब सरकारी मशीनरी भी विश्वास करने लगी है कि अभी सरकार को कोई खतरा नहीं है.'

सरकार के भविष्य के प्रति नौकरशाहों में बने संशय का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले दिनों कैबिनेट की बैठक में कई मंत्रियों ने आरोप लगाया था कि अफसर उनके निर्देर्षो पर न तो अमल करते हैं और न ही विभागीय कामकाज में रुचि लेते हैं. कई अफसरों पर तो पूर्ववर्ती सरकार में मंत्री रहे नेताओं और भाजपा संगठन के नेताओं को ज्यादा महत्व देने तक के आरोप लग चुके हैं. प्रशासनिक जानकारों का कहना है कि मुख्यमंत्री कमलनाथ पूर्व में सरकारी मशीनरी में बदलाव लाने के कई प्रयास कर चुके हैं और इसी क्रम में बड़े पैमाने पर तबादले किए तो उन पर 'तबादला उद्योग चलाने' तक का आरोप लगाया गया. उसके बाद भी नौकरशाही के रवैए में बदलाव नहीं आ रहा था, मगर अब सरकार के भविष्य पर छाए कुहासे के छंटने से सरकारी मशीनरी के कामकाज में रफ्तार आने की पूरी संभावना है. 

विधानसभा में बीते बुधवार को दंड विधि संशोधन विधेयक पर मत विभाजन में भाजपा के दो विधायकों- नारायण प्रसाद त्रिपाठी व शरद कोल ने कांग्रेस सरकार के पक्ष में मतदान कर राज्य की सियासी फिजा बदल दी. सरकार के भविष्य को लेकर छिड़ी चर्चाओं पर फिलहाल विराम लग गया है. कांग्रेस की सरकार को पूर्ण बहुमत नहीं है. राज्य की 230 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस के 114 और भाजपा के 108 विधायक हैं. कमलनाथ सरकार को निर्दलीय, बसपा व सपा विधायकों का समर्थन हासिल है. भाजपा के दो विधायकों ने विधेयक का समर्थन कर कांग्रेस सरकार को और मजबूती दे दी है.

भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने रविवार को कहा कि कर्नाटक में मंत्रिमंडल के गठन के बाद पार्टी नया मिशन शुरू करेगी। कांग्रेस शासित मध्य प्रदेश में वर्तमान राजनीतिक स्थिति के प्रश्न पर विजयवर्गीय ने कहा, हमारी कोई इच्छा सरकार गिराने की नहीं है, पर कांग्रेस के विधायकों में भी इस प्रकार की अनिश्चितता है।


उन्होंने कहा कि कांग्रेस के विधायकों का अपने नेतृत्व पर अविश्वास है और उनकी गुटबाजी से वो खुद ही दुखी हैं और इसलिए उन्हें लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नेतृत्व बहुत अच्छा है। विजयवर्गीय ने कहा कि कांग्रेस की सरकारों को गिराने की हमारी इच्छा नहीं है लेकिन कांग्रेस की सरकार अपने कर्मों से और उनके कारणों से गिर रही है। जयपुर में भाजपा मुख्यालय में विजयवर्गीय ने पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं से मुलाकात की।

भाजपा राज्यपाल से शिकायत करेगी
वहीं दूसरी ओर, मध्यप्रदेश भाजपा ने रविवार को कहा कि वह चार दिन पहले एक विधेयक पर हुए मत विभाजन में कांग्रेस विधायकों के हस्ताक्षरों का सत्यापन करवाने के लिए प्रदेश के राज्यपाल से शिकायत करने पर विचार कर रही है। इस विधेयक में भाजपा के दो विधायकों ने क्रॉस र्वोंटग की थी।

मध्यप्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने कहा, हमें पता चला है कि बुधवार शाम को दंड विधि (मध्य प्रदेश संशोधन) विधेयक, 2019 पर मत विभाजन के दौरान सदन में कांग्रेस के करीब 8 से 12 विधायक मौजूद नहीं थे, लेकिन उन्होंने भी इस मतदान में भाग लिया था।

*तुम हमें यूँ भुला न पाओगे*
*संगीत सितारे गायन समूह की संगीत सभा*
संगीत सितारे गायन का संस्कारित समूह आगामी २८ जुलाई को होटल विनायक में मोहम्मद रफ़ी जी के याद में एक संगीत संध्या का आयोजन किया गया सभा का प्रारंभ सरस्वती वंदना से बेंगलोर से आई आभा गुप्ता से हुआ
संगीत सितारे के पी आर ओ इंजिनियर अनुपम तिवारी ने जानकारी देते हुए बताया की इस संगीत सभा में मोहम्मद रफ़ी जी के ही मधुर और स्मरणीय गाने गए  ये गाने एकल और युगल दोनो गाये गए
*इस संगीत सभा के संयोजक अनुपम तिवारी ,अतुल शर्मा,गगन शर्मा,विराट शर्मा और साजन शर्मा है*
ये संगीत सभा ऑर्केस्ट्रा और ट्रैक पर आधारित थी इस संध्या में बेगलोर ,कलकत्ता ,भोपाल,नयी दिल्ली से गायक पधारें तथा ग्वालियर,मोरेना,दतिया,डबरा,के कलाकार भी प्रस्तुति दी
संगीत सितारे एक गायन का व्हाट्स अप्प समूह है जिसमे इंजिनियर,डॉक्टर,बैंक अधिकारी,पुलिस अधिकारी,एडवोकेट,गृहणी,और युवा साथी भी अपनी प्रस्तुति देते है
*तुम मुझे यूँ भुला ना पाओगे*
*संगीत सितारे गायन का संस्कारित समूह -एक शाम रफी जी के नाम*
*गाये गए गानों की सूची*
1.  *मैं  जट यमला*  *एकल* *अनुपम तिवारी*
2. *तू इस तरह से*  *एकल*गगन भार्गव*
3. *वादा कर ले साजना*  *गगन-दीपा जैन* 
4. *ओ हसीना जुलफोवाली*  *विराट-आभा* 
5. *इक परदेशी*  *एकल* *आभा गुप्ता*
6. *ओ मेरी महबूबा* *एकल* *हरि शंकर तिवारी*
7. *तू  मेरी सपनों की  रानी  बनेगी* *एकल* *महेंद्र भार्गव*
9. *कहे को बुलाया मुझे बलमा* *बलवीर*
10. *अहसान तेरा होगा मुझे पे* *वीरेंद्र बाथम*
11. *तुमने किसी की जान को* *वीरेंद्र बाथम*
12. *रिमझिम के गीत सावन गाएँ*   *धर्मेंद्र -स्वाति परमार*
13. *दिल की आवाज़ भी सुन*सोलो *राजेश*
14. *जाने  कहाँ  गएँ  वो दिन*  *नवीन शाहनी जी*
15. *आज कल तेरे मेरे प्यार के*   *सपना-साजन* 
17.  *मेरा गोरा रंग ले ले मोहे श्या म   रंग दे दे* *शोभा शुक्ला*
18.  *मैने पुछा चाँद  से* *शशिकला बाथम*
19.  *ये परदा उठा दो* *ममता जैसवाल-विराट शर्मा*
20. *जाने क्या बात है* *दीपा जैन*
21. *तुमसे अच्छा कौन है* *प्रवीण मिश्रा*
22. *ये वादियां ये फ़िजाये* *धर्मेंद्र*
23. *पर्दा है पर्दा है* *साजन शर्मा*
24.  *दिवाना हुआ बादल*  नवीन शाहनी जी- ममता जी 
25 . *आजा आजा  मैं हूँ  प्यार तेरा*  *अतुल शर्मा*
26. *छुप गए सारे नजारे* *सरिता शर्मा-अतुल शर्मा* 
27. *ओ मेरे सोना रे-ऋषिका जादौन*
28. *तू इस तरह से मेरी जिंदगी-हेमंत जोशी*
29. *रोज रोज आंखों तले -दीपा भदौरिया*
30. *रहे न रहे हम-स्वाति*



मंथन न्यूज


कर्नाटक में तीन हफ्तों तक चली सियासी उठापटक का अंत कुमारस्वामी सरकार के गिरने और बीएस येदियुरप्पा के मुख्यमंत्री बनने के बाद खत्म हो गई है। अब मध्यप्रदेश सियासी नाटक का नया रंगमंच बनने की ओर अग्रसर है। कम से कम पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का बयान तो इसी तरफ इशारा करता है। चौहान ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में कहा कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने जो खेल शुरू किया है उसे भाजपा खत्म करेगी। माना जा रहा है कि उनका इशारा भाजपा के उन दो विधायकों की तरफ था जिन्होंने कांग्रेस के पक्ष में वोट करके पार्टी से बगावत की थी। 

कमलनाथ ने भाजपा खेमे को चौंकाया

कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस (जनता दल सेक्युलर) गठबंधन की सरकार गिरने के दो दिन बाद ही मध्यप्रदेश के नेता दावा कर रहे थे कि यदि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का इशारा मिल जाए तो वह कांग्रेस की सरकार गिरा देंगे। इसी बीच भाजपा के दो विधायकों नारायण त्रिपाठी और शरद कोल ने एक विधेयक पर पार्टी के रुख के खिलाफ जाकर कांग्रेस सरकार के पक्ष में वोट किया। केवल इतना ही नहीं दोनों विधायकों ने कमलनाथ के नेतृत्व में विश्वास व्यक्त करते हुए कांग्रेस में शामिल होने का इशारा तक दिया है। इसके अलावा मध्यप्रदेश सरकार के करीबी कंप्यूटर बाबा ने दावा किया है कि भाजपा के चार अन्य विधायक उनके संपर्क में हैं और कमलनाथ जब आदेश देंगे मैं उन्हें पेश कर दूंगा।  

शिवराज के तेवर गरम

मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शुक्रवार को कांग्रेस पर जमकर हमला बोला। चौहान ने कहा कि उन्होंने (कांग्रेस) खेल की शुरुआत की है जिसे हम (भाजपा) खत्म करेंगे। कांग्रेस सरकार बसपा और अन्य पार्टियों के समर्थन से सरकार चला रही है। चूंकि उसके पास हमसे कुछ ही सीटें ज्यादी थी इसलिए हमने नैतिक आधार पर सरकार बनाने का दावा पेश नहीं किया। 

कांग्रेस को भुगतना होगा अंजाम

चौहान ने कहा कि कांग्रेस ने जो गंदी राजनीति शुरू की है उसे इसका अंजाम भुगतना पड़ेगा। पूर्व मुख्यमंत्री का यह बयान राज्य में चल रही राजनीतिक उथल-पुथल के दो दिन बाद आया है। जब भाजपा के दो विधायकों नारायण त्रिपाठी और शरद कोल ने बुधवार को विधानसभा में पेश हुए दंड विधि (संशोधन) विधेयक, 2019 के पक्ष में वोट दिया। जबकि पार्टी इस विधेयक के खिलाफ थी।

माना जा रहा है कि पार्टी प्रदेश के दिग्गज नेताओं की भूमिका बदलने पर भी विचार कर सकती है।

भोपाल - दो विधायकों द्वारा कांग्रेस का साथ देने पर भाजपा आलाकमान प्रदेश के शीर्षस्थ नेताओं की भूमिका से बेहद नाराज है। लोकसभा चुनाव में 28 सीट जीतने के बाद से इन नेताओं ने न तो संगठन पर ध्यान दिया और न ही विधायकों की नाराजगी टटोली, ध्यान ही नहीं दिया कि क्या चल रहा है।

यही वजह है कि दो विधायकों को तोड़ने में कांग्रेस कामयाब हो गई। इस कवायद के बाद ये माना जा रहा है कि दिग्गजों की भूमिका बदलने पर भी पार्टी विचार कर सकती है। इन्हीं कारणों के चलते पार्टी आलाकमान डैमेज कंट्रोल की चाभी भी खुद अपने हाथों में रखना चाहता है, ताकि विधायकों में भरोसा बना रहे। इस रणनीति के चलते ही एक अगस्त को होने वाली बैठक में पार्टी के शीर्ष नेता भोपाल आ सकते हैं।

रिपोर्ट तैयार करवा रहा आलाकमान

सूत्रों के मुताबिक मध्यप्रदेश भाजपा में लंबे समय से सबकुछ सही नहीं चल रहा है। पहले भाजपा को विधानसभा चुनाव में पराजय मिली और अब विधानसभा में दो विधायक कांग्रेस के साथ चले जाने से बड़े नेताओं के बीच की अंतर्कलह खुलकर सामने आ गई है। पार्टी आलाकमान ने विधायकों की नाराजगी के लिए सीधे तौर पर संगठन और बड़े नेताओं को जिम्मेदार माना है। इन नेताओं की कार्यप्रणाली से भी केंद्रीय नेतृत्व नाराज है।

अब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने संगठन की निष्क्रियता, गुटबाजी और बड़े नेताओं की भूमिका पर रिपोर्ट तलब की है। इसकी जिम्मेदारी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कुछ नेताओं को सौंपी गई है। पार्टी के नेता आशंका जता रहे हैं कि कई बड़े नेताओं की भूमिका बदली जा सकती है। खासतौर पर संगठन और विधायक दल के जिम्मेदार पदों पर बैठे लोगों के पर कतरे जा सकते हैं। सूत्र बताते हैं कि गुरुवार को प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह के दिल्ली दौरे के दौरान पार्टी के आला नेताओं ने नाराजगी जाहिर की थी कि मना करने के बाद भी सरकार गिराने को लेकर बार-बार बयान क्यों दिए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि इससे जनता में ऐसा संदेश जा रहा है कि हमारे नेता सत्ता के बिना तड़प रहे हैं।

छापे का मुद्दा क्यों नहीं उठाया

भाजपा में इन दिनों एक और मुद्दा उछल रहा है कि लोकसभा चुनाव के दौरान प्रदेश में जो छापामारी हुई थी, उस बारे में विधानसभा में कमलनाथ सरकार से जवाब क्यों नहीं मांगा गया। पोषण आहार घोटाले और तबादलों में की गई बंदरबांट को लेकर भाजपा क्यों मौन रही।

डैमेज कंट्रोल खुद करेगा केंद्रीय नेतृत्व

प्रदेश में विधायक नारायण त्रिपाठी और शरद कोल द्वारा विधेयक पर मत विभाजन में कांग्रेस के पक्ष में वोटिंग करने के मामले को आलाकमान ने गंभीरता से लिया है। पार्टी नेताओं की मानें तो अब केंद्रीय नेतृत्व डैमेज कंट्रोल की कमान खुद अपने हाथों में रखेगा। दोनों विधायकों को भी दिल्ली बुलाया गया है, जहां राष्ट्रीय संगठन महामंत्री उनसे बातचीत करेंगे।

शर्मनाक राजनीति

मध्यप्रदेश विधानसभा में घटित घटनाक्रम कांग्रेस और मुख्यमंत्री कमलनाथ की शर्मनाक राजनीति को दर्शाता है। जहां तक भाजपा का सवाल है तो कांग्रेस की अनैतिक राजनीति से हमारा नेतृत्व ज्यादा सतर्कता से निपटेगा - डॉ. दीपक विजयवर्गीय, मुख्य प्रवक्ता, भाजपा मप्र

भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश कार्यसमिति सदस्य धैर्यवर्धन शर्मा ने एस पी शिवपुरी से मिलकर स्मैक प्रकरण में की गई आंशिक कार्यवाही के लिए धन्यवाद देने के साथ ही अपर्याप्त कार्यवाही के प्रति अपनी चिंता से अवगत कराते हुए एस पी शिवपुरी को एक पत्र सौपा | इस पत्र के माध्यम से भाजपा नेता  धैर्यवर्धन ने शिवपुरी एसपी को सम्पूर्ण जिले वासियों की भावनाओं से अवगत कराया | इस पत्र में धैर्यवर्धन ने समस्त पुलिस कर्मियों का डोप टेस्ट कराने, स्मैक के साथ पकडे गए आरोपियों का अल्प्राजोलम एवं ब्रेन मैपिंग टेस्ट कराने तथा प्रकरण में नारकोटिक्स विभाग को कार्यवाही में सम्मिलित करने हेतु सुझाव भी दिए है |
एस पी शिवपुरी से लगभग आधा घंटे की चर्चा में धैर्यवर्धन ने मौखिक तौर पर भी कुछ गोपनीय जानकारी दी । पुलिस अधीक्षक को लिखे इस पत्र में कहा गया है कि जुलाई माह में स्मैक प्रकरणों से शिवपुरी दहल गया है | नाबालिग लड़की एवं एक पुलिस कर्मी की नशे के ओवर डोज के कारण हुई मौत से जन मानस सहमा हुआ है | पिछले २-३ माह में भी लगभग आधा दर्जन मौतें इस शहर में हुई है | राघवेंद्र नगर में हुई महिला की नृशंस हत्या भी स्मैक का ही दुष्परिणाम थी | स्मैक पीते हुए पुलिस के सिपाही की वीडियो से उत्पन्न जनचर्चाओं में लोग कह रहे है कि जिले में लगभग 50 पुलिस कर्मचारी स्मैक का सेवन कर रहे है | उन्होंने कहा कि आपके द्वारा की गयी अनुशंसा पर 6 पुलिस कर्मियों के विरुद्ध आई.जी. महोदय ग्वालियर द्वारा की गयी कार्यवाही भी अभिनंदनीय है |
भाजपा नेता धैर्यवर्धन ने कहा कि हालाँकि पुलिस द्वारा प्रशंसनीय कदम उठाते हुए अनेक लोगों को स्मैक का नशा करते हुए गिरफ्तार कर चुकी है परन्तु यह कार्यवाही पर्याप्त नहीं है | स्मैक पीते हुए गिरफ्तार किये गए लोग, एवं मृतक नाबालिग प्रकरण में जेल भेजे गए लोगों को रिमांड पर न लिया जाना भी चिंता का विषय है | मृतक सिपाही की भी कॉल डिटेल की जाँच की जाना आवश्यक है | अब तक पकड़े गए स्मैक वालों से क्या पुलिस को यह जानकारी नहीं जुटानी चाहिए कि आखिर उनको स्मैक दे कौन रहा है । स्मैक मामले में अब तक हुई पुलिस की मंथर कार्यवाही बेहद निराशाजनक है ।
सम्पूर्ण शिवपुरी जिले में बड़ी संख्या में स्मैक का सेवन किया जा रहा है | नागरिकों की शिकायत पर जून माह में बैराड़ थाने के आरक्षक दीप चंद एवं प्रधान आरक्षक संजीव कुमार को तत्कालीन एस.पी. के द्वारा लाइन अटैच किया गया था | यह दोनों पुलिस कर्मी 1 माह बीत बाद भी आज भी बैराड़ थाने में पदस्थ है | स्मैक विक्रेताओं से संलिप्तता के गंभीर आरोप के बावजूद भी थाना प्रभारी द्वारा अभी तक दोनों को रिलीव न किये जाना बेहद चिंताजनक है |
इसी माह पकडे गए स्मैक का नशा करने वाले एवं पूर्व में भी जिले क विभिन्न थानों के चिन्हित हुए स्मैकियों से नए सिरे से पूछताछ कर शिवपुरी जिले के मुख्य सप्लायर तक पहुंचा जा सकता है | स्मैक के नशे में पिछले दिनों चिन्हित हुई आल्टो कार में बैठे व्यक्तियों के खिलाफ भी अब तक कोई कार्यवाही न होना भी बेहद चिंताजनक है |
धैर्यवर्धन ने कहा कि पुलिस की कार्यवाही में कोई भी निर्दोष नहीं फसना चाहिए और दोषी को बचना नहीं चाहिए ।
दिनांक ९.७.१६ को अभिसंवर्धन समाजसेवी संस्था के बैनर तले भी शिवपुरी के अनेकों गणमान्य नागरिकों ने शिवपुरी जिलाधीश को 10 पर समयबद्ध कार्यवाही हेतु ज्ञापन प्रस्तुत किया था | कृत कार्यवाही से प्रेस अथवा आम जनता को अवगत न कराये जाने से भी समाज में चिंता व्याप्त है |
लगभग एक सप्ताह पूर्व स्थानीय सांसद केपी यादव जी के साथ भाजपा जिला अध्यक्ष सुशील रघुवंशी, वर्तमान कोलारस विधायक वीरेंद्र रघुवंशी जी ने भी स्मैक प्रकरण में प्रभावी कार्यवाही हेतु आपसे चर्चा की थी |
चिंतित नगरवासियों ने स्मैक पर जनजागरण एवं पुलिस के ध्यानाकर्षण हेतु वसुंधरा कुटुंबकम समिति शिवपुरी द्वारा एक रैली शहर में निकली थी जिसमे सैनिकों, महिलाओं आदि ने अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज कराई थी | शहर के कुछ पार्षदों ने भी आपसे इस संबंध में मुलाकात की थी, परन्तु अभी तक स्मैक माफियाओं के विरुद्ध उल्लेखनीय कार्यवाही आज दिनांक तक नहीं हुई है |
पुलिस के अनुविभागीय अधिकारीयों को भी समय सीमा में ऐसे लोगों को चिन्हित करना, धर-पकड़ करने एवं उनसे आवश्यक पूछताछ कर सप्लायर्स तक पहुँचने हेतु ठोस कदम उठाये जाकर जिले को स्मैक मुक्त करने की दिशा में गंभीर प्रयास किये जाने की नितांत आवश्यकता है |

मध्य प्रदेश में कांग्रेस द्वारा भाजपा के दो विधायकों को तोड़ने की घटना से भाजपा नेतृत्व सकते में हैं। पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा है कि यह मामला उनके ध्यान में हैं और इसे गंभीरता से लिया गया है। 


केंद्रीय नेतृत्व ने इस पर प्रदेश नेतृत्व से रिपोर्ट मांगी है और प्रमुख नेताओं के साथ वह विचार विमर्श भी कर रहा है। भाजपा ने इस पर पलटवार के संकेत दिए हैं, लेकिन वह इसके लिए उचित समय का इंतजार करेगी। भाजपा नेतृत्व इसका कारण प्रदेश के पार्टी नेताओं के बीच समन्वय न होना मान रही है। 

प्रदेश के तीन बड़े नेताओं शिवराज सिंह चौहान, कैलाश विजयवर्गीय व नरेंद्र सिंह तोमर के केंद्रीय राजनीति में आने के बाद नए प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह, नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव और नरोत्तम मिश्रा के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। सूत्रों के अनुसार इस घटना के लिए प्रदेश के नेता एक दूसरे को जिम्मेदार बता रहे हैं। 

भाजपा में ही हैं दोनों विधायक : दो विधायकों का पालाबदल करा कांग्रेस ने अपनी मजबूती की कोशिश की है। भाजपा के एक नेता ने कहा है कि चूंकि दोनों विधायकों ने व्हिप का उल्लंघन नहीं किया है और उन्होंने इस्तीफा दिया है, इसलिए वे भाजपा में ही है।.

शिवराज सरकार के समय आए थे भाजपा में : विधानसभा में एक विधेयक पर मतदान के दौरान भाजपा के नारायण त्रिपाठी व शरद कौल ने सरकार के पक्ष में मतदान किया था। चूंकि इस विधेयक पर किसी का विरोध नहीं था, इसलिए भाजपा ने मतदान में भाग नहीं लिया। उसने व्हिप भी जारी नहीं किया था। यह दोनों विधायक भाजपा की शिवराज सिंह चौहान की सरकार के समय भाजपा में आए थे। इनको लाने में शिवराज सिंह की अहम भूमिका रही थी। .

मध्य प्रदेश में दो भाजपा विधायकों के कमलनाथ सरकार के पक्ष में मतदान करने के बाद राज्य की सियासत गरमाने लगी है। 



शिवराज सिंह चौहान और कमलनाथ


   


मुख्य बातें

येदियुरप्पा सोमवार को विधानसभा में साबित करेंगे बहुमत


मध्य प्रदेश में भाजपा के दो बागी विधायक बागी हो गए है


शिवराज सिंह ने कहा है कि शुरूआत कांग्रेस ने की है तो अंत हम करेंगे


भोपालः जुलाई महीने की शुरुआत से कर्नाटक में सियासी नाटक शुरू हुआ था, जिसका अंत गठबंधन सरकार के जाने और येदियुरप्पा के मुख्यमंत्री बनने के बाद जुलाई के तीसरे हफ्ते में हुआ। अब येदियुरप्पा के सामने नई चुनौती है कि वो किस तरह से सदन के पटल पर विश्वासमत हासिल करेंगे? एक कहावत है कि दूध की जली बिल्ली मट्ठा फूंक-फूंक कर पीती है। एक बार मुख्यमंत्री बनने के बाद येदियुरप्पा सदन में बहुमत साबित करने से पहले ही इस्तीफा देकर बड़े बे-आबरू होकर बाहर निकले थे। लेकिन इस बार सदन के पटल पर डंके की चोट पर बहुमत साबित करने का दावा कर रहे हैं और विधानसभा का गणित कहता है कि वो सदन में बहुमत साबित करने में कामयाब हो जाएंगे। 

कर्नाटक के बाद गरमाई मध्य प्रदेश की सियासत
कर्नाटक के सियासी नाटक के अंत के बाद मध्य प्रदेश की राजनीति अब गरमाने लगी है। राज्य में कांग्रेस सरकार द्वारा लाए गए बिल का भाजपा के दो विधायकों ने समर्थन करके बिल को पास करवा दिया। भाजपा के दो विधायक बागी हो गए हैं। इसके पहले यह माना जा रहा था कि कर्नाटक के सियासी नाटक के बाद भाजपा मध्य प्रदेश में ऑपरेशन लोटस के जरिए मध्य प्रदेश की सत्ता पर काबिज हो जाएगी। लेकिन कमलनाथ ने भाजपा खेमे में ही सेंध लगा दी। 

कमलनाथ के कदम से भाजपा खेमे में बेचैनी बढ़ी
कमलनाथ के इस कदम से राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि राज्य की कांग्रेस सरकार की तरफ से जो कदम उठाया गया है वह बिल्कुल अनुचित है। शुरुआत कांग्रेस की तरफ से की गई है, उसका पटाक्षेप हम करेंगे। लेकिन भाजपा के दो विधायकों नारायण त्रिपाठी और शरद कोल ने एक विधेयक पर पार्टी के रुख के खिलाफ जाकर कांग्रेस सरकार के पक्ष में वोट किया। केवल इतना ही नहीं दोनों विधायकों ने कमलनाथ के नेतृत्व में विश्वास व्यक्त करते हुए कांग्रेस में शामिल होने का इशारा तक कर दिया है। इसके साथ मध्यप्रदेश सरकार के करीबी कंप्यूटर बाबा ने दावा किया है कि भाजपा के चार अन्य विधायक उनके संपर्क में हैं और कमलनाथ जब आदेश देंगे मैं उन्हें पेश कर दूंगा। 


निर्दलीयों और सहयोगी दलों के समर्थन पर टिकी है एमपी सरकार
शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि कमलनाथ की सरकार कुछ पार्टियों के सहयोग और निर्दलीयों के समर्थन से चल रही है। उनके पास हमसे कुछ सीटें ज्यादा थीं, इसलिए हमने नैतिक आधार पर उनकी सरकार बनने दी। अब हमारी पार्टी के विधायकों को तोड़ने का काम उन्होंने शुरू कर दिया है तो यह काम हम भी कर सकते हैं। 

भाजपा के दो विधायकों ने किया कमलनाथ सरकार का समर्थन 
शिवराज सिंह ने कहा कि कांग्रेस राज्य में गंदी राजनीति कर रही है। उन्होंने कहा कि खेल की शुरुआत कांग्रेस की तरफ से की गई है, इसका अंत हम करेंगे और कांग्रेस को इसका अंजाम भुगतना पड़ेगा। शिवराज सिंह का यह बयान मध्य प्रदेश की राजनीति में हो रहे उथल-पुथल के संकेतों के दो दिन बाद आया है। भाजपा के दो विधायकों ने कमलनाथ सरकार के समर्थन में मतदान किया, जबकि भारतीय जनता पार्टी इस दंड विधि (संशोधन) विधेयक का विरोध कर रही थी।  




   


भाजपा के दो विधायकों ने कमलनाथ सरकार के समर्थन में वोटिंग की थी।


नारायण त्रिपाठी ने कहा था कि भाजपा में उनका सम्मान नहीं था जिस कारण से उन्होंने सरकार को समर्थन दिया है।


भोपाल. मध्यप्रदेश में भाजपा के दो विधायकों द्वारा कांग्रेस के समर्थन में वोटिंग करने के बाद प्रदेश की सियासत में बयानबाजियों का दौर जारी है। वहीं, भाजपा सूत्रों के अनुसार, भाजपा विधायकों को एकजुट करने के लिए पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा भोपाल आ सकते हैं। इससे पहले दिल्ली में भाजपा नेता शिवराज सिंह चौहान और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह ने दिल्ली में पार्टी के बड़े नेताओं से मुलाकात की थी।


 

विधायकों से करेंगे चर्चा
पार्टी सूत्रों के अनुसार, जेपी नड्डा सदस्यता अभियान की बैठक के बहाने 1 अगस्त को मध्यप्रदेश आ सकते हैं। जानकारी के अनुसार, जेपी नड्डा यहां भाजपा से सभी सांसदों औऱ विधायकों के साथ अलग-अलग चर्चा करेंगे। नड्डा यहां प्रदेश की मौजूदा राजनीतिक स्थितियों, विधायकों के असंतोष और आगे की रणनीति समझेंगे। बताया जा रहा है भाजपा में फूट के बाद कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा एक-एक विधायक से अलग से मुलाकात कर चर्चा भी कर सकते हैं।

 

गृहमंत्री अमित शाह की भी नजर
वहीं, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और देश के गृहमंत्री अमित शाह भी पूरे सियासी घटनाक्रम पर नजर बनाए हुए हैं। अमित शाह पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से फीडबैक ले रहे हैं। पार्टी आलाकमान ने प्रदेश के नेताओं को सोचसमझकर बयानबाजी करने की सलाह दी है।

 

बागी विधायकों से नहीं हुआ संपर्क
वहीं, बताया जा रहा है कि भाजपा के बागी विधायक नारायण त्रिपाठी और शरद कोल का भाजपा से कोई संपर्क नहीं हुआ है। बताया जा रहा है कि दोनों ही नेता भोपाल से बाहर बताए जा रहे हैं। बता दें कि मध्यप्रदेश विधानसभा सदन में भाजपा के मैहर से विधायक नारायण त्रिपाठी और व्यौहारी से विधायक शरद कोल ने एक विधेयक पर कमल नाथ सरकार के समर्थन में वोटिंग की थी।

 

भार्गव ने कहा- दोनों विधायक हमारे
वहीं, नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव ने कहा है कि पूरा मतविभाजन फर्जी और असंसदीय था। हम इस मामसे में राजभवन पहुंचकर शिकायत करेंगे। उन्होंने कहा कि दोनों ही विधायक हमारे दल के हैं।

अगस्ता वेस्टलैंड मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा गिरफ्तार मध्य प्रदेश के मुख्यपमंत्री कमलनाथ के भांजे रतुल पुरी ईडी के अधिकारियों को चकमा देकर फरार हो गए.


 



मध्य प्रदेश के सीएम कमलनाथ के भांजे रतुल पुरी (फाइल फोटो)


अगस्ता वेस्टलैंड मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा गिरफ्तार मध्य प्रदेश के मुख्यपमंत्री कमलनाथ के भांजे रतुल पुरी ईडी के अधिकारियों को चकमा देकर फरार हो गए. दरअसल, ईडी ने रतुल पुरी को अगस्ता वेस्टलैंड मामले में पूछताछ के लिए तलब किया था. इसके बाद वो ईडी दफ्तर भी पहुंचे, जिसके बाद एक अधिकारी ने उसे कुछ देर रुकने के लिए कहा लेकिन रतुल पुरी मौका देखकर ईडी ऑफिस से       फरार हो गए.

इससे पहले अप्रैल में पुरी अगस्ता वेस्टलैंड वीवीआईपी हेलीकॉप्टर घोटाले से जुड़े मनी लांड्रिंग मामले में ईडी के सामने पेश हुआ था। उन्हें एजेंसी ने पूछताछ के लिए बुलाया था। सूत्रों की मानें तो पुरी जांच में सहयोग नहीं कर रहा था। इसी वजह से ईडी उन्हें गिरफ्तार करना चाहती थी। उसे पूछताछ के लिए बुलाया गया था लेकिन  वह अधिकारियों को चकमा देकर वहां से भागने में सफल रहा।

ईडी अगस्ता वेस्टलैंड मामले के संबंध में पुरी के खिलाफ ताजा समन जारी करेगी। इसी बीच पुरी अग्रिम जमानत के लिए दिल्ली की एक अदालत पहुंच गए हैं। अदालत उनकी याचिका पर आज ही सुनवाई करेगी।

ईडी सूत्रों के अनुसार अगस्ता वेस्टलैंड घोटाले में हाल ही में सरकारी गवाह बने कथित बिचौलिए और दुबई कारोबारी राजीव सक्सेना ने जो बयान दर्ज करवाए थे उनमें पुरी का नाम सामने आया था। दिल्ली की विशेष अदालत को ईडी के विशेष लोक अभियोजक डीपी सिंह और एन के मट्टा ने बताया था कि एजेंसी ‘आरजी’ नाम के एक शख्स की पहचान करना चाहती है जिनके नाम से गुप्ता की डायरियों में 50 करोड़ रुपये से अधिक की एंट्री की गई है। 

मध्यप्रदेश विधानसभा में एक विधेयक पर इस सप्ताह सत्तारुढ़ कांग्रेस सरकार का समर्थन करने वाले मैहर विधानसभा सीट से भाजपा विधायक नारायण त्रिपाठी के खिलाफ स्थानीय कांग्रेसी नेता लामबंद हो गए हैं। कांग्रेस नेताओं ने त्रिपाठी को आदतन दलबदलू बताते हुए कहा कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से मात्र दो दिन पहले उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी थी। वहीं, प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी ने कहा, ''कांग्रेस पार्टी के सदन में नेता के रूप में कोई भी निर्णय लेना मुख्यमंत्री कमलनाथ का विशेषाधिकार है। पार्टी की मजबूती के लिये जो उचित था, वह निर्णय उन्होंने लिया। उन्होंने कहा कि यह पार्टी का अंदर का मामला है और मैहर के कांग्रेस नेताओं से बात की जायेगी। 


मालूम हो कि बुधवार को विधानसभा में एक विधेयक पर मतविभाजन के दौरान भाजपा के दो विधायकों नारायण त्रिपाठी और शरद कोल ने कांग्रेस के पक्ष में वोट दिया था। दोनों क्रमश: सतना जिले की मैहर विधानसभा सीट व शहडोल जिले की ब्योहारी विधानसभा सीट से विधायक हैं। 

समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक, नवंबर 2018 में विधानसभा चुनाव में नारायण त्रिपाठी के खिलाफ चुनाव लड़े कांग्रेस नेता श्रीकांत चतुर्वेदी ने मैहर में शुक्रवार को एक दर्जन कांग्रेस नेताओं के साथ प्रेस कान्फ्रेंस में कहा कि त्रिपाठी ने आठवीं बार पाला बदला है। उनकी कलई खुल गई है। उन्होने कहा, ''हम बड़े नेताओं का सम्मान करते है, लेकिन त्रिपाठी पर निर्णय लेने से पहले हमसे विचार किया जाना चाहिये था।


चतुर्वेदी के साथ पत्रकार वार्ता में मौजूद धर्मेश घई और श्रीनावास उरमालिया ने भी उन्हें कांग्रेस में शामिल करने को लेकर सतर्कता बरतने को कहा। 

भोपाल- पूर्व मंत्री और बीजेपी विधायक नरोत्तम मिश्रा को   केंद्र सरकार ने वीवीआईपी सुरक्षा में रखा है । गृह मंत्रालय प्रदेश के मुख्य सचिव को भेजे गए। लैटर  से इस  आशय की जानकारी दी गई है । नरोत्तम मिश्रा को अब देशभर में एक्स(x)  श्रेणी सुरक्षा व्यवस्था मिलेगी। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में लोकसभा चुनाव 2019 में उत्तर प्रदेश के प्रभारी रह चुके। नरोत्तम  को यह सुरक्षा व्यवस्था गृह मंत्रालय द्वारा वीवीआईपी सुरक्षा के लिए तय मानको  के स्तरों पर गहन जांच पता करने  बाद मुहैया कराई गई है

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