2013 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में राज्य के 1.91 फीसदी लोगों ने 6,43,171 मतों को नोटा के रूप में प्रयोग किया.
भोपाल: साल 2013 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में पहली बार चुनाव आयोग ने 'नोटा' को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में जगह दी थी. दरअसल, नोटा चुनावों में मतदाताओं को प्रत्याशियों को खारिज करने का विकल्प देता है. नोटा के अनुसार, अगर चुनाव में मतदाता को पार्टियों के प्रत्याशी पसंद नहीं आते हैं, तो वह उन्हें नोटा के माध्यम से खारिज कर सकता है. हालांकि, मतदाताओं के इन वोटों का चुनाव परिणाम पर असर नहीं होता है. लेकिन, 2013 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में राज्य के 1.91फीसदी लोगो ने 6,43,171 मतों को नोटा के रूप में प्रयोग किया. राज्य में इन लोगों ने किसी भी उम्मीदवार को वोट पाने के योग्य नहीं मानकर नकार दिया था.
राज्य की 20 सीटों पर रहेगा नोटा का प्रभाव
प्रदेश में इतनी बड़ी संख्या में नोटा पर पड़े मतों का चुनाव परिणामों पर भी व्यापक प्रभाव पड़ा. नोटा में पड़े मतों ने इस विधानसभा चुनाव में कई उम्मीदवारों का खेल बिगाड़ दिया था. चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, साल 2013 में राज्य की करीब 20 सीटों पर नोटा के कारण बड़ा उलटफेर हुआ था. यहां जीत-हार का अंतर 1,000 से 2500 वोटों तक था. प्रदेश की विजयपुर विधानसभा सीट पर करीब 2019 लोगों ने नोटा का इस्तेमाल किया था. इस सीट से कांग्रेस के रामनिवास रावत 67,358 मतों के साथ जीते थे. अगर यह वोट बीजेपी को मिल जाते, तो चुनाव परिणाम बदल सकता था. नोटा ने जबलपुर पूर्व, जबलपुर पश्चिम और बरघाट, छिंदवाड़ा, छतरपुर, दिमनी, सैलाना समेत कई सीटों पर अपनी उपस्थिति से चौंकाया था.
उपचुनावों में भी नोटा ने बदला था चुनाव परिणाम
ग्वालियर (पूर्व) विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी की माया सिंह 59,824 वोटों से विजयी हुईं. इस सीट पर 2,112 मतदाताओं ने नोटा का प्रयोग किया था. यहां कांग्रेस के उम्मीदवार मुन्नीलाल गोयल को 58677 वोट मिले थे. इस सीट पर नोटा में पड़े मत अगर कांग्रेस को मिलते तो परिणाम कुछ और ही आता. राज्य की सुरखी विधानसभा क्षेत्र में भी कांग्रेस के गोविंद सिंह 1,41 वोटों से हारे थे. वहीं, नोटा का प्रयोग करने वाले मतदाताओं की संख्या यहां 1,550 थी. इसी साल फरवरी में मुंगवाली विधानसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव में 2,253 मतदाताओं ने नोटा का प्रयोग कियया था. गौरतलब है कि इस सीट पर कांग्रेस ने 2,123 वोटों से जीत हासिल की थी. अगर, यह वोट बीजेपी की ओर पलट जाते तो चुनाव परिणाम बदलना तय था.
आगामी विधानसभा चुनाव में नोटा निभा सकता है अहम भूमिका
वर्तमान में प्रदेश में सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के सामने भी नोटा एक बड़ी चुनौती साबित हो सकता है. चुनावी साल में राज्य का माहौल भारत बंद और सवर्णों के एससी-एसटी एक्ट के खिलाफ किए जा रहे प्रदर्शन के चलते काफी बिगड़ गया है. पूरे प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2018 के लिए लोगों ने भारी संख्या में नोटा का विकल्प चुनने का कैंपेन भी चला रखा है. साथ ही प्रदेश की जनता द्वारा विधानसभा क्षेत्रों मे प्रत्याशियों का विरोध भी किया जा रहा है. यह स्थिति एक बार फिर से राज्य में नोटा विकल्प को एक बड़ा प्रभावी फैक्टर बनाने में कोर-कसर नहीं छोड़ रही है. आगामी विधानसभा चुनाव में भी नोटा चुनाव परिणामों में बड़ा उलटफेर कर सकता है.
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