एनएसजी: भारत के खिलाफ अपने रुख पर अड़ा चीन

मंथन न्यूज दिल्ली भारत के परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में सदस्यता के खिलाफ चीन अपने रुख पर अड़ा हुआ है। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस जैसे प्रमुख देशों के समर्थन के बावजूद चीन अगले महीने स्विट्जरलैंड के बर्न में होने वाले पूर्ण अधिवेशन में फिर रोड़ा अटका सकता है। सोमवार को उसने इस संबंध में संकेत भी दे दिए हैं। 

इसे भारत द्वारा ‘वन रोड वन बेल्ट’ के बहिष्कार के बाद चीन की बौखलाहट के रूप में भी देखा जा रहा है। एनएसजी में सदस्यता के लिए भारत को चीन का समर्थन जरूरी है। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने कहा, ‘चीन ने एनएसजी में गैर-एनपीटी सदस्यों की भागीदारी को लेकर अपने रुख में कोई बदलाव नहीं किया है। हम 2016 के पूर्ण अधिवेशन के आदेश के बाद और द्वी-चरणीय दृष्टिकोण से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिए खुली और पारदर्शी अंतर-सरकारी प्रक्रिया पर सहमति बनने के बाद एनएसजी समूह का समर्थन करते हैं।’ 

भारत की कोशिशें जारी
एनएसजी के अगले पूर्ण अधिवेशन से पहले भारत ने 48 देशों के इस समूह की सदस्यता हासिल करने के लिए अपनी कोशिशें फिर से शुरू कर दी हैं। मगर अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस जैसे अन्य प्रमुख देशों के समर्थन के बावजूद चीन अब भी अपने रुख पर अड़ा है। 

रूस के जरिए चीन को साधने की कोशिश
सूत्रों के अनुसार भारत रूस के जरिए चीन को साधने की कोशिश कर सकता है। हाल में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और भारत दौरे पर आए रूस के उप-प्रधानमंत्री दमित्री रोगोजिन के बीच मुलाकात में इस संबंध पर में बातचीत हुई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ रूसी उप-प्रधानमंत्री से मुलाकात के दौरान भी यह मुद्दा उठा, लेकिन कोई ठोस आश्वासन नहीं मिल सका। चीन के ‘वन बेल्ट-वन रोड’ परियोजना में रूस महत्त्वपूर्ण भागीदार है। रूस को साथ लाने के लिए चीन ने बेहद कसरत की थी। 

भारत का तर्क
भारत का तर्क है कि एनएसजी की सदस्यता में रोड़ा अटकने से हम इस संयंत्र के लिए स्वदेशी तकनीक विकसित करने को मजबूर हैं। वहां एक और दो नंबर का इकाइयों में उत्पादन चल रहा है। तीन और चार का निर्माण चल रहा है। भारतीय अधिकारियों का मानना है कि कुडनकुलम का दबाव डालने से रूस एनएसजी के मुद्दे पर चीन पर दबाव डालेगा।