मंथन न्यूज़ दिल्ली -नोटबंदी लागू करने के समय सरकार की तरफ से बार-बार कहा गया कि इससे कर्ज की दरों में नरमी आएगी। कुछ नरमी आई भी, लेकिन यह उम्मीद से बेहद कम है। अब रिजर्व बैंक (आरबीआइ) ने प्रमुख ब्याज दरों को स्थिर रखकर यह संकेत दिया है कि ब्याज दरों को घटाने में उसके हाथ बंधे हुए हैं।

ऐसे में अब सरकार व आरबीआइ दोनों ही यह उम्मीद कर रहे हैं कि बैंक ही अपने स्तर पर कर्ज दरों को घटाकर आम आदमी के साथ ही सुस्त होती अर्थव्यवस्था को भी मदद पहुंचाएं।
शनिवार को वित्त मंत्री अरुण जेटली और गवर्नर उर्जित पटेल की अगुआई में जब सरकार व केंद्रीय बैंक के अफसरों के बीच बजट प्रस्तावों पर चर्चा हुई, तो उसमें ब्याज दरों को लेकर कुछ ऐसी ही सहमति बनी। वित्त मंत्री व उनके मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ हर बजट के बाद होने वाली यह पारंपरिक बैठक थी।
इसमें वित्तीय व बैंकिंग क्षेत्र को लेकर हुई घोषणाओं को किस तरह से आरबीआइ के सहयोग से लागू किया जाए, इसके बारे में विचार-विमर्श हुआ।
इसके अलावा खास तौर पर राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने के लिए जारी होने वाले इलेक्टोरल बांड पर चर्चा हुई। वित्त मंत्री ने बताया भी कि ये बांड किस तरह और किन बैंकों के जरिये जारी किए जाएंगे, इनकी अवधि क्या होगी, इन्हें हर चुनाव से कितने दिन पहले शुरू किया जाना चाहिए, जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई है।
माना जाता है कि वित्त मंत्रालय से इस बारे में आवश्यक जानकारी मिलने के बाद केंद्रीय बैंक इसे लागू करने का रोडमैप जारी करेगा।
छाया रहा ब्याज दरों का मुद्दा
बैठक में ब्याज दरों का मुद्दा सबसे ज्यादा हावी रहा। जेटली ने बेहद साफगोई से कहा, "हर वित्त मंत्री की तरह मैं भी चाहता हूं कि ब्याज दरों में कमी हो, लेकिन अभी आरबीआइ ने दरों को स्थिर रखने का फैसला किया है। मैं इस फैसले का सम्मान करता हूं।"
जब ब्याज दरों को लेकर आरबीआइ गवर्नर से पूछा गया तो उन्होंने साफ तौर पर कुछ नहीं कहा, लेकिन यह संकेत जरूर दे दिया कि फिलहाल तो इस बारे में बैंकों से ही कुछ उम्मीद की जा सकती है। पटेल के मुताबिक, "रेपो रेट को लेकर हमने जो भी फैसला किया है उसे इस आधार पर किया है कि बैंकों के पास नोटबंदी के पास काफी राशि जमा हुई है। इससे बैंकों को फायदा हुआ है।
उन्होंने ब्याज दरों में कुछ कटौती भी की है और हमें लगता है कि आने वाले दिनों में भी अभी कर्ज की दरों में गिरावट की गुंजाइश है। अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ाने के लिए बैंकों को ब्याज दरों में और कटौती करनी चाहिए। जहां तक आरबीआइ की बात है तो वह महंगाई की दर की स्थिति को देखते हुए अपने कदम तय करेगा।"
क्या है रेपो रेट
रेपो रेट वह वैधानिक दर है, जिस पर बैंक आरबीआइ से कम अवधि के कर्ज लेते हैं। इसका अल्पकालिक अवधि के कर्ज की दरों पर असर पड़ता है।
पूनम पुरोहित
Post a Comment