क्या पुनः जीते लोकप्रिय जनप्रतिनिधि का चुनाव शून्य घोषित करना न्याय संगत है??

मंथन न्यूज देश में आज भी संविधान को प्राथमिकता दी जाती है और आगे भी दी जायेगी ।भारत एक ऐसा देश है जहाँ लोकतंत्र को सिर्फ महत्त्व ही नही दिया जाता बल्कि लोकतंत्र की दुहाई भी दी जाती है और लोकतंत्र होना भी चाहिए । हमारे लोकतंत्र में चुनाव जीत कर आये जनप्रतिनिधि को लोकतंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है फिर इसी लोकतंत्र में जनता का जनाधार लेकर आये और जन- जन के मसीहा और जाति पाति के भेदभाव से हमेशा दूर रहकर सभी का हित करने वाले लोकप्रिय नेता का चुनाव यदि चुनाव आयोग शून्य घोषित कर देता है और जनाधार लेकर आये जनप्रतिनिधि की  बात को और  पक्ष को यदि चुनाव आयोग में ना सुना जाय तो उसे न्याय संगत कहना कहां तक उचित है  ?? हमारे चुनाव आयोग क्या संविधान से बड़ा हो गया ??भारत का कानून हमेशा यही कहता है सौ गुनाहगार छूट जाए पर एक बेगुनाह को सजा नही होनी चाहिए. पर चुनाव आयोग ने तो बिना पक्ष जाने सजा का फरमान सुना दिया  वो भी एक हारे हुए प्रत्याशी की  चंद बातो के आधार पर ।हमारे देश का कानून जहॉ सबूतों की बाते करता है पर चुनाव आयोग को उन सबूतों और गवाहों की जरुरत भी महसूस नही हुयी ?? उसके बाद भी हम लोकतंत्र में विष्वास करते है  ।देश के संविधान और न्यायालय  पर विष्वास करते है और निश्चित ही हमारा कानून  न्याय देगा और चुनाव आयोग भी एक पक्ष के आधार किए अपने फैसले को वापस लेगा और न्याय संगत फ़ैसला देगा ।