अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन पर पढ़ें उनकी चंद कविताएं, हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा

अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन पर पढ़ें उनकी चंद कविताएं, हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा मंथन न्यूज़ - आज भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का जन्मदिन है. वे 92 साल के हो गये हैं. अटल बिहारी वाजपेयी एक ओजस्वी वक्ता और राजनीतिज्ञ तो थे ही उनमें एक कवि भी छुपा था, जिसे राजनीति के जंजाल में फंसे होने के बावजूद भी उन्होंने मरने नहीं दिया. वे अपनी रचनाओं में अपने मन की अभिव्यक्ति करते थे. उनकी दो कविता संग्रह बहुत प्रसिद्ध हुई -न दैन्यं न पलायनम्‌ और मेरी इक्यावन कविताएं. विगत कुछ वर्षों से वे अस्वस्थ चल रहे थे, लेकिन जब वे स्वस्थ थे, तो उन्होंने कहा था मैं अपने जन्मदिन पर एक कविता लिखता हूं. उनके पसंदीदा कवि थे शिवमंगल सिंह ‘सुमन’.  उनके जन्मदिन के अवसर पर प्रस्तुत है उनकी कुछ रचनाएं-
मौत से ठन गई
ठन गई
मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई, 
यों लगा जिंदगी से बड़ी हो गई.
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं.
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं
लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं
तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ, 
सामने वार कर फिर मुझे आजमा.
मौत से बेखबर, जिंदगी का सफर,
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर
बात ऐसी नहीं कि कोई गम ही नहीं,
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं.
प्यार इतना परायों से मुझको मिला, 
ना अपनों से बाकी है कोई गिला.
हर चुनौती से दो हाथ मैंने किये, 
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए.
आज झकझोरता तेज तूफान है,
नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है.
पार पाने का कायम मगर हौसला, 
देख तेवर तूफां का, तेवरी तन गई.
मौत से ठन गई.
कवि आज सुना वह गान रे, 
जिससे खुल जाएं अलस पलक.
नस–नस में जीवन झंकृत हो, 
हो अंग–अंग में जोश झलक.
ये - बंधन चिरबंधन 
टूटें – फूटें प्रासाद गगनचुंबी 
हम मिलकर हर्ष मना डालें, 
हूकें उर की मिट जाएं सभी.
यह भूख – भूख सत्यानाशी 
बुझ जाय उदर की जीवन में.
हम वर्षों से रोते आए 
अब परिवर्तन हो जीवन में.
क्रंदन – क्रंदन चीत्कार और, 
हाहाकारों से चिर परिचय.
कुछ क्षण को दूर चला जाए, 
यह वर्षों से दुख का संचय.
हम ऊब चुके इस जीवन से, 
अब तो विस्फोट मचा देंगे.
हम धू - धू जलते अंगारे हैं, 
अब तो कुछ कर दिखला देंगे.
अरे ! हमारी ही हड्डी पर, 
इन दुष्टों ने महल रचाए.
हमें निरंतर चूस – चूस कर, 
झूम – झूम कर कोष बढ़ाए.
रोटी – रोटी के टुकड़े को, 
बिलख–बिलखकर लाल मरे हैं.
इन – मतवाले उन्मत्तों ने, 
लूट – लूट कर गेह भरे हैं.
पानी फेरा मर्यादा पर, 
मान और अभिमान लुटाया.
इस जीवन में कैसे आए, 
आने पर भी क्या पाया? 
रोना, भूखों मरना, ठोकर खाना, 
क्या यही हमारा जीवन है? 
हम स्वच्छंद जगत में जन्मे, 
फिर कैसा यह बंधन है? 
मानव स्वामी बने और— 
मानव ही करे गुलामी उसकी.
किसने है यह नियम बनाया, 
ऐसी है आज्ञा किसकी? 
सब स्वच्छंद यहां पर जन्मे, 
और मृत्यु सब पाएंगे.
फिर यह कैसा बंधन जिसमें, 
मानव पशु से बंध जाएंगे ? 
अरे! हमारी ज्वाला सारे— 
बंधन टूक-टूक कर देगी.
पीड़ित दलितों के हृदयों में, 
अब न एक भी हूक उठेगी.
हम दीवाने आज जोश की— 
मदिरा पी उन्मत्त हुए.
सब में हम उल्लास भरेंगे, 
ज्वाला से संतप्त हुए.
रे कवि! तू भी स्वरलहरी से, 
आज आग में आहुति दे.
और वेग से भभक उठें हम, 
हद् – तंत्री झंकृत कर दे।
1: दो अनुभूतियां

-पहली अनुभूति
बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं 
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
लगी कुछ ऐसी नज़र बिखरा शीशे सा शहर
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
पीठ मे छुरी सा चांद, राहू गया रेखा फांद
मुक्ति के क्षणों में बार बार बंध जाता हूं
गीत नहीं गाता हूं
-दूसरी अनुभूति

गीत नया गाता हूं
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात
प्राची मे अरुणिम की रेख देख पता हूं
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा,
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं