मंथन न्युज शिवपुरी-
विलेज टाइम्स समाचार सेवा।
अगर यह सही है कि मूर्खो पर धूर्त शासन करते है तो प्रमाण, प्रमाणिकता परिणाम पर सवाल होना लाजमी है। जिसका जबाव सत्ता, सुख में डूबे उन राष्ट्र भक्तों से आना ही चाहिए जिन्होंनेे सत्ता के लिये राष्ट्र भक्ति जनसेवा के नाम, शिक्षा, स्वास्थ्य, सेवा, रोजगार का सत्यानाश किया है और देश-प्रदेश के करोड़ों-करोड़ युवा, बुजुर्ग, बच्चों के सपनों का बंटाधार किया है। जो किसी भी नैसर्गिक व्यवस्था, सभ्य समाज और उनकी महान संस्कृति के साथ खिलबाड़ ही नहीं, उनके साथ बड़ा अन्याय भी है। जो राष्ट्र भक्ति के नाम सत्ता सुख भोगने वालो के लिये एक अक्षम्य अपराध भी है।
अगर यो कहे कि सतत सत्ता में बने रहने के मद ने उन्हें इतना दुस्साहसी अहंकारी, धूर्त बना दिया कि वह सरेयाम मंचो से झूठ और दया की पात्र निरीह आवाम व अन्तिम पक्तिं के व्यक्ति से छल, धोखा करने से भी नहीं चूकते, तो कोई अति संयोक्ति न होगी। फिर चेहरे दृश्य हो या आदृश्य।
अगर हम लगभग 7 करोड़ की आबादी वाले म.प्र. को ही ले तो आज 15 वर्ष की सतत सत्ता के बावजूद म.प्र. के पास एक भी ऐसा उदाहरण नहीं जिसकी चर्चा हम गर्व के साथ कर, अपनी सत्ताओं पर गौरव मेहसूस और स्वयं को गौरान्वित मेहसूस कर सके।
गांव, गली, मौहल्ले, नगर, शहर महानगर तो दूर की कोणी सच तो यह है कि राजधानी तक में न तो ऐसा सहज सर्वोत्तम कोई शिक्षण, स्वास्थ्य, संस्थान है और न ही कोई ऐसा रोजगार सृजन का संस्थान। सिवाय लूट की प्रायवेट दुकानो के अलावा जो आम व्यक्ति को ही नहीं सरकारों को भी भय ग्रस्त मजबूर कर शासकीय विकल्प के आभाव में सरेयाम लूट रही है। शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में विकल्प की विकराल स्थिति ने जहां आम नागरिक के दिन का सुकून छीन रखा है तो वहीं रात की नींद हराम कर रखी है।
देखा जाये तो म.प्र. में जीवोत्पार्जन की समस्या या शासकीय सेवाओं की दुर्गति कुछ ज्यादा जुदा नहीं। जहां रोजगार के इन्तजार में कई पीढिय़ों बैकार हो गई तो वहीं सेवा के नाम पर हर छड़ कष्ट और पीढ़ा का वातावरण बना हुआ है। सेवाओं का आलम ऐसा कि आज सेवा के नाम चहुंओर हाहाकार मचा है। अब यह उन जन, राष्ट्र भक्तों की सेवा है या सतत सत्ता में बने रहने का जुनून, इस पर सवाल भी होना चाहिए और जबाव भी आना चाहिए फिर वह चाहे दृश्य हो या अदृश्य।
मगर असंख्य पीढ़ा झेलता आम नागरिक का दर्द और पीढ़ा यह नहीं कि सत्ता में कौन रहेगा, उसका दर्द पीढ़ा तो यह है कि सत्ता को संचालित कर, विभिन्न माध्यमों से अपने गाड़े पसीने की कमाई देने वालो के बच्चों को सस्ती सहज, गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा, स्वास्थ्य, शासकीय, सेवा और बैकार हाथों को रोजगार कौन देगा।
हो सकता है इन यक्ष सवालों का जबाव उन तथाकथित राष्ट्र व जन भक्तों के पास न हो। मगर राष्ट्र व जनकल्याण का चिन्तन और चिन्ता रखने वाले गांव, गली, प्रदेश, देश के उन राष्ट्र भक्त, बुद्धिजीवी, विधा, विद्यवान, समाज, संगठन, संस्थाओं को ऐसे तथाकथित राष्ट्र भक्तों से यह सवाल अवश्य पूछना चाहिए कि आखिर क्यों अवसर पूर्व ही हमारी प्रतिभायें, प्रदर्शन, पुरुषार्थ से पूर्व दम तोडऩे मजबूर रहती है। जो आंकड़े, बैठक, प्रपत्रों की शोभा बढ़ा रहे जिन मंचो से लोग वोट की खातिर भ्रम फैला सरेयाम अपनो के बीच झूठ पर झूठ बोले जा रहे है क्या हम महान भारत वंशियों की यहीं संस्कृति, संस्कार रहे है। क्या हमें हमारे पूर्वज महान राष्ट्र भक्त लाल, बाल, पाल सहित, भगत, आजाद, विस्मिल, गांधी, सुभाषचन्द्र बोस से, यहीं विरासत, संस्कार मिले है, क्या हमने पण्डित जवाहरलाल, सरदार पटेल, पं. दीनदयाल, श्यामा प्रसाद, लोहिया, गोलवरकर, देवरस, शास्त्री, इन्दिरा जी से यहीं सीखा है। जब देश के त्याग पुरुष, राष्ट्रवादी बार-बार अपने संदेशों से अपनी संस्कृति, संस्कारों को समय-समय पर स्पष्ट करते हो।
ऐसे में झूठ, फरेब, अहंम, अहंकार पर तो सवाल-जबाव होना ही चाहिए और स्वस्थ लोकतांत्रिक परम्परा के नाते इसका पालन भी, क्योंकि अगर लोकतंत्र में सत्ता, संगठनों की विश्सनीयता नहीं बची और लोगों की आस्था इनमें नहीं रही, तो आने वाले समय में, सत्ता के रास्ते भी सुगम और संघर्ष मुक्त नहीं रह पायेगें। शायद जिसकी कल्पना राष्ट्र के लिये संघर्ष पूर्ण जीवन जीने वाले हमारे पूर्वजों ने भी न की होगी। आज की स्थिति में यही सबसे बड़ी समझने और समझाने वाली बात है। जो हर राष्ट्र भक्त का कत्र्तव्य भी होना चाहिए और उत्तरदायित्व भी। जिससे एक समृद्ध, खुशहाल वैभवशाली राष्ट्र का निर्माण हो सके।
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