व्ही.एस.भुल्ले
विलेज टाइम्स समाचार सेवा। दिनांक 29 अप्रैल 2018
सम्भवत: स्वार्थी, लालची शब्दों के अर्थ से अधिकांश मानव, जीव, जगत परिचित रहता है। मगर यहां चोर, पापी का अर्थ वेद अनुसार पृथ्वी के सन्तुलन को नष्ट करने वाला पापी और उसके भौतिक संसाधनों का दोहन करने वाला चोर होता है। चूकि नैसर्गिक, प्रकृति, प्रदत्त व्यवस्था और तत्कालीन अनुभव, ज्ञान कहता है तथा जो हमारे वेदो में दर्ज है।
ये अलग बात है कि इन महान वेदो में आस्था रखने न रखने वालो में सहमति असहमति मान्यता, उपेक्षा हो सकती है। मगर आज के परिपेक्ष्य में ले, तो आम नागरिक का यह यक्ष सवाल वाजिब है कि मंच पर मेरा स्थान कहां ?
आज जब हम लोकतांत्रिक व्यवस्था में है और जनतांत्रिक एवं जीवन मूल्यों को लेकर जीते है और जनता के लिये जनता द्वारा स्थापित शासन से जनकल्याण की उम्मीद करते है ऐसे में नैसर्गिक, सामाजिक समरसता, सामाजिक एवं प्राकृतिक सन्तुलन को, निहित स्वार्थ या लालच बस नष्ट करना पाप ही हुआ। वहीं जनभावना एवं जनाकांक्षा सहित प्राकृतिक संपदा और लोगों के नैसर्गिक हकों की लूट को चोरी ही करार दिया जायेगा।
बरना मंच पर अपना स्थान तलाशती पथराई विद्या, विद्यवान, प्रतिभाओं की आंखे और आशा आकांक्षायें लिये अवसर से पूर्व ही पीडि़त, वंचित लोगों की तरह हताश, मजबूर नजर नहीं आती। जिसकी कि वह नैसर्गिक रुप से हकदार है। सत्ता की हनक में सत्तायें संगठन, संस्थायें शायद यह भूल रही है कि आदर्श राज्य की नींव निहित, स्वार्थ और लालच के ईट गारे से कभी मजबूत नहीं बनती और न ही ऐसी नींवो पर समृद्धि और खुशहाली से सरावोर दिव्य और भव्य भवन, महल खड़े हो पाते।
कहते है कि आदर्श राज्य वह होते है जहां प्रकृति के स्नेह आर्शीवाद से समय पर ऋतु का लाभ मिले और जिस राज्य की चारो दिशायें निर्मल तथा अधिकांश भू-भाग जल भण्डारों से पटा, भरा हो और ऊर्जा उन्मुखी अन्न का उत्पादन प्रचूरता के साथ हो, जहां लोगों को न तो अकाल मृत्यु का भय, न ही कोई रोग सताता हो, सामाजिक समरसता ऐसी कि समुचा भूभाग आन्नदमयी किलकारियों से गुजायमान हो। और जहां राष्ट्र, जन, आस्था, प्रकृति, कल्याण की बंदनाऐं अन्य बंदनाओं से पूर्व हो, जहां के नागरिक इतने चेतन्य और सजग हो, कि उन्हीं के बीच का कोई स्वार्थी, लालची, चोर, पापी उनका स्वामी, शासक न बन जाये।
अब इसे हम सुखद ही कह सकते है कुछ लोग आज भी मेहनतकश, प्रतिभाशाली लोगों को स्वयं, संगठन, दल, संस्था का मंच खाली रख स्थान देना चाहते है तो कुछ समान अवसर के नाम पर सतत सत्ता में बने रहने के लिये हर वो प्रयास कर लेना चाहते है। जिससे सत्ता में बने रहने या सत्ता प्राप्ति का मार्ग उन्हें हमेशा सहज सुविधाजनक बना रहे, फिर वह प्रयास, साधन, संसाधन नैतिक हो या फिर अनैतिक।
जय स्वराज
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