व्ही एस भुल्ले
कहते है नैसर्गिक सिद्धान्त के विरुद्ध व्यवहार कभी अच्छी व्यवस्था का निर्माण नहीं कर सकता, खासकर जब नैसर्गिक व्यवहार अनुरुप अंगीकृत व्यवस्था अहंम, अहंकार में डूब कुव्यवस्था का कारण बन जायेें। फिर वह जनतंत्र, राजतंत्र, लोकतंत्र या फिर कोई अन्य व्यवस्था हो। आज जब हम भारतवर्ष के महान लोग 69वां गणतंत्र दिवस मनाने जा रहे है ऐसे में राष्ट्र के विधा, विद्ववान, प्रतिभाओं को सहज अवसरों का अभाव हमें विचलित करता है।
कारण लोकतांत्रिक व्यवस्था होने के बावजूद प्रतिभा विधा, विद्ववानों के लिये न्यायपूर्ण अवसरों का अभाव और प्रतिभा प्रदर्शन हेतु सहज न्याय पूर्ण संस्था, संसाधनों का अभाव जो हमारी व्यवस्था की अक्षमता साबित करने काफी है।
फिर चाहे वह आर्थिक सामाजिक तकनीक विज्ञान, शिक्षा, सोच, राजनैतिक क्षेत्र हो या फिर संस्थान, सभी दूर तनाव और अन्याय के प्रति आक्रोश नजर आता है। अहंम, अहंकार और स्वयंभू ज्ञान के सागर में हिलोरे मारती हमारी व्यवस्था से जुड़ी संस्थायें, व्यक्ति अपनी-अपनी विश्वसनीयता धीरे-धीरे खो रहे है जो हमारे महान राष्ट्र ही नहीं, लोकतंत्र के लिये खतरनाक और चिन्ता का विषय होना चाहिए।
जिस तरह से लोकतंत्र में सबसे प्रभावी राजनैतिक दल, नेता, सत्ता प्रमुख, संस्थायें आचारण व्यवहार मे जुदा नजर आती है। फिर उन्हें संचालित व्यक्ति करें या व्यक्तियों का समूह, जिस तरह से भाषा, बॉडी, लेंग्यूज समान नजर नहीं आती, उसी प्रकार प्रतिभा विकास में सहज अवसरों की व्यवस्था नहीं दिख पाती। यह इस तरह की स्थिति हमारी व्यवस्था के बीव इस बात के स्पष्ट संकेत है कि न तो हमारी, न ही हमारी सत्ता, संस्थाओं, संगठनों की दिशा ठीक है जिसका परिणाम कि सहज अवसरों के अभाव में हमारी प्रतिभायें दम तोड़ रही है तो विधा, विद्ववान हतोसाहित हो रहे है। सबसे बड़ा दुर्भाय तो हमारे लोकतंत्र में यह है कि जो सत्ता, संगठन, संस्थाओं के प्रमुख पदों तक पहुंच जाते है, वह समय अभाव का रोना रो इतने अहंम, अहंकारी हो जाते है या संचालकों द्वारा बना दिये जाते है जिससे वह अपने निहित स्वार्थो की पूर्ति निर्विवाद रुप से कर सके और अपने अनुसार उन्हें चला सके।
जो भारतवासियों के विकास में सबसे बड़ी बाधा है, मगर हमें विश्व गुरु बन राष्ट्र को पुन: समृद्ध खुशहाल बनाना है तो हमारा संविधान इतना महान है कि उसकी भावना अनुरुप क्षणिक व्यवस्था बदलाव के साथ अपने राष्ट्र की विलक्षण प्रतिभा, विधा, विद्ववानों के साथ न्याय कर उन्हें सहज अवसर संसाधन मुहैया करा सकते है।
अगर हमारे महान संविधान ने हमें दबी कुचली पिछड़ी जातियों के कल्याण के लिये आरक्षण की इजाजत दी है तो फिर जिन पर राष्ट्र की समृद्धि खुशहाली सहित राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान का भार हो, तो फिर उन्हें वो मान-सम्मान अवसर संसाधन, अवसर, आरक्षण क्यों नहीं। जो नैसर्गिक सिद्धान्त अनुरुप प्रमाणिक हो। अगर आजादी के 68 वर्ष बाद अपनी समृद्धि, खुशहाली के धोतक विधा, विद्ववान, प्रतिभाओं को पारदर्शी, स्पर्शी सहज अवसर संसाधन बगैर निहित स्वार्थ, दल गत भावनाओं से ऊपर उठ दिला पाये तो यह हमारे 69 वे गणतंत्र की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी जो राष्ट्र निर्माण और विश्व गुरु बनने की दिशा में एक सफल और सक्षम कदम हमारी व्यवस्था का होगा।
Post a Comment