क्या योजनाएं सही लोगों तक पहुंचाने की भी चिंता न करे सरकार, आधार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उठाया सवाल

क्या योजनाएं सही लोगों तक पहुंचाने की भी चिंता न करे सरकार, आधार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उठाया सवालपूनम पुरोहित मंथन न्यूज़ दिल्ली 31jan 2108 - आधार मामले पर चल रही सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक अहम सवाल उठाया। पूछा कि क्या सरकार का यह चिंता करना वाजिब नहीं है कि सामाजिक कल्याण की योजनाओं का लाभ सही व्यक्ति तक पहुंचे या लाभांवित व्यक्ति जिंदा है भी या नहीं।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने यह सवाल आधार को चुनौती देने वालों की ओर से पेश वरिष्ठ वकील श्याम दीवान की दलीलों पर उठाया। दीवान का कहना था कि यह चिंता सभी नागरिकों के निजी और बायोमीट्रिक ब्योरे के एकत्रीकरण को जायज नहीं ठहरा सकती। चूंकि इससे उनकी प्रोफाइलिंग और निगरानी की जा सके।
पीठ ने कहा, 'ऐसा लगता है कि वह (केंद्र और राज्य सरकार) आधार का इस्तेमाल सामाजिक कल्याण की योजनाओं के लिए कर रहे हैं। लेकिन आप (वकील) बता रहे हैं कि इसका इस्तेमाल प्रोफाइलिंग के लिए किया जा रहा है।'
कोर्ट ने सरकार के उस जवाब का भी हवाला दिया कि वह आधार के इस्तेमाल से मनरेगा, रसोई गैस सब्सिडी आदि योजनाओं में डीबीटी के जरिए बचत कर रही। ऐसे में जानकारी जुटाना समाज कल्याण योजनाओं का लाभ सुनिश्चित करने के लिए है।
दिन भर चली सुनवाई में दीवान ने मानवाधिकार यूरोपीय कोर्ट (ईसीएचआर) के भी कई फैसलों का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश तथा ओडिशा जैसे राज्य निजी तथा बायोमीट्रिक ब्योरे को 'स्टेट रेजिडेंट्स डॉटा हब' (एसआरडीएच) बनाने के लिए मिला रहे हैं। इसमें आधार पंजीकरण के समय जुटाए गए ब्योरे भी होंगे।
उन्होंने कहा कि 2012 से ही यूआइडीएआई 'स्टेट रेजिडेंट डाटा हब्स' बनाने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है और विभिन्न राज्य सरकारों के इसके लिए बजटीय आवंटन भी हैं।
एसआरडीएच सॉफ्टवेयर लगाया गया है और उसमें आधार जोड़ा गया है, जो अन्य स्त्रोतों से स्थानीय डाटा लेकर उसे समृद्ध करता है। एसआरडीएच में इस तरह डाटा के एकत्रीकरण से धर्म और जाति आधारित प्रोफाइलिंग की जा सकती है। इससे नागरिकों की निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा।
उन्होंने निजता के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों की पीठ के फैसले को उद्धृत करते हुए कहा कि डाटा के इस तरह एकत्रीकरण से निजता का अधिकार ध्वस्त हो जाएगा और राज्य के व्यापक शक्ति हासिल करने का खतरा पैदा होगा।
उल्लेखनीय है कि इसके पहले की सुनवाई में भी कोर्ट ने कहा था कि जब देश आतंकवाद तथा मनी लॉन्डि्रंग का सामना कर रहा हो तो व्यक्ति की निजता के अधिकार और राज्य की जिम्मेदारियों में एक संतुलन बनाने की जरूरत है। कोर्ट का यह रुख आधार पर सरकार की दलीलों को मजबूत करता प्रतीत होता है। उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च अदालत ने पिछले 15 दिसंबर को आधार को विभिन्न सेवाओं को सभी मंत्रालयों की कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ने की समयसीमा बढ़ाकर 31 मार्च कर दी है।