
चीन के सरकारी अखबार "ग्लोबल टाइम्स" को दिए साक्षात्कार में बंबावले ने उपरोक्त टिप्पणी की। उन्होंने भारत और चीन के बीच बढ़ते व्यापार घाटे का मुद्दा भी उठाया। कहा, "हम 20 वर्षों से मांग रहे है कि चीन हमारे आइटी एवं दवा क्षेत्र के लिए अपना बाजार खोले। आखिरकार चीन ऐसा कर क्यों नहीं रहा है? हमें इस पर स्पष्ट बातचीत करनी चाहिए।
उनके अनुसार, डोकलाम की घटना के बाद भारत और चीन दोनों के लिए यह जरूरी है कि वे विवादित मुद्दों का हल तलाशने के लिए खुले दिल से बातचीत करें। पहले से ज्यादा बातचीत का सिलसिला बढ़ाएं। बकौल बंबावले, "डोकलाम की घटना को चीन ने जरूरत से ज्यादा तूल दे दी। भारत और चीन की जनता व नेता इतने अधिक अनुभवी हैं कि द्विपक्षीय रिश्तों की राह में आने वाली इस तरह की क्षणिक कठिनाइयों का हल आसानी से निकाल लेंगे।" वह बोले, "हमें एक-दूसरे की चिंताओं का ख्याल रखना होगा।
द्विपक्षीय वार्ता बराबरी और आपसी लाभ पर आधारित होनी चाहिए।" भविष्य में भी चीन की ओर से डोकलाम में सड़क बनाने की आशंका को बंबावले ने बखूबी जाहिर की। बीजिंग को आगाह करते हुए भारतीय राजदूत का कहना था कि सीमा स्थित संवेदनशील जगहों पर यथास्थिति बदलने की कोशिश नहीं होनी चाहिए। बार्डर पर यथास्थिति बहाल रखना बेहद जरूरी है। इस पर दोनों देशों का स्पष्ट नजरिया होना चाहिए। ध्यान रहे कि सिक्कम के डोकलाम में चीनी सेना द्वारा सड़क बनाने की कोशिशों के बाद दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने हो गई थीं।
यह गतिरोध 73 दिन बाद सुलझा था। बंबावले ने चीनी सेना के एक और दुस्साहस का जिक्र किया। कहा कि चीन की सेना ने अरुणाचल प्रदेश के सियांग जिले में भारतीय सीमा के अंदर सड़क निर्माण का प्रयास किया, लेकिन इस मसले को जल्द सुलझा लिया गया। उनका कहना था कि भारत और चीन एक-दूसरे के दुश्मन नहीं है। दोनों देश विकास की नई ऊंचाई हासिल करने के लिए एक-दूसरे के साझीदार हैं।
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