
साल 2018 के शुरुआती डेढ़ महीनों में अकेले कोटा शहर में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों द्वारा आत्महत्या करने का यह पांचवां मामला है। घर-परिवार को बर्बाद करने वाली यह र्दुव्यवस्था पिछले दशकों में पूरे देश में इस कदर फैल गई कि हजारों बच्चे अपने जीवन को खत्म कर चुके हैं। पूरे देश में छात्र परीक्षा की सफलता और असफलता के भंवर में पड़कर तनाव तथा निराशा में माहौल में आत्महत्या कर रहे हैं। पूरे संसार को ज्ञान-विज्ञान सिखाने वाले भारत में सुरसा के मुंह के जैसी फैल रही इस दुर्घटना के कारणों में हमारी नई शिक्षा पद्धति की अपनी भूमिका भी है। सैद्धांतिक पढ़ाई को भरपूर महत्व दिया जा रहा है, जिसके नीचे प्रायोगिक (प्रैक्टिकल) समझ दब कर रह गई है। प्रायोगिक अध्ययन व्यवस्था लुप्त-सी हो गई है।
दो-तीन घंटे की परीक्षा में जिसने जो लिखा, वही उस विद्यार्थी के मूल्यांकन का मानक हो गया है। इसी के आधार पर उसकी श्रेणी या ग्रेड तय हो रही है। उसके जीवन और नौकरी का आधार भी यह मूल्यांकन ही है। साथ ही सरस प्रायोगिक अध्ययन व्यवस्था को अनुपयोगी कर पढ़ाई को इतना नीरस बना दिया गया है कि छात्र परिणाम केंद्रित होकर अपने जीवन को सिर्फ ‘रिजल्ट’ में ही खोज रहा है। यदि उसका थोड़ा मनोरंजन हो भी रहा है तो वह भी गिरते चरित्र के संवादों या फिल्मों से। यह कितना आश्चर्य है कि एक स्कूली छात्र के रोल में मलयाली अभिनेत्री प्रिया प्रकाश का ‘आंख मारना’ देश में बड़ी बात हो गई! जरा सोचिए कि क्या यह कामुकता भरा दृश्य विद्यालयों के हालात सुधारने में मददगार साबित होगा?
ऐसा नहीं है कि परीक्षा की कोई जरूरत नहीं है। परीक्षा का कोई विकल्प नहीं है। वह हर शिक्षा प्रणाली का अंतिम परिणाम है। परीक्षा प्राचीन गुरुकुल पद्धति से चली आ रही शिक्षा प्राप्ति के बाद श्रेष्ठ तथा अश्रेष्ठ का विभाजन करने वाली एक अनिवार्य प्रक्रिया है। यही परीक्षा पद्धति पक्षी की आंख पर ही निशाना साधने वाले अजरुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर घोषित करती है, लेकिन इसका उद्देश्य यह भी था कि कठिन को विद्यार्थी के भीतर तक आसानी से उतारा जा सके। 1द्रोणाचार्य के आश्रम में यह तय किया जा सके कि कौन पांडव किस शस्त्र विद्या को सीखने लायक है। आज के दौर में यह कितना हास्यास्पद है कि असमान बुद्धि, विवेक और मन वाले विद्यार्थियों को एक-समान विषय पढ़ने और रटने पड़ रहे हैं। चाहे उस छात्र की उस विषय में रुचि हो या नहीं।
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