इनसे सीखें राजनेता, सैनिक का बस एक ही धर्म होता है; राष्ट्रधर्म

पूनम पुरोहित मंथन न्यूज़ दिल्ली -हादत का सांप्रदायीकरण करने वालों को सेना दो टूक जवाब दे चुकी है। सुंजवां कैंप पर हुए आतंकी हमले के बाद सेना ने कहा था, भारतीय फौजी का बस एक ही धर्म है और वह है राष्ट्रधर्म। सेना शहादत का सांप्रदायीकरण नहीं करती। जो लोग ऐसा करते हैं, वे सेना को अच्छी तरह नहीं जानते..। भारत व उसकी सेना की इसी विशिष्टता को सामने रखती है पलामू (झारखंड) और भारत-पाक नियंत्रण रेखा (तरकुंडी सेक्टर) राजौरी से यह रिपोर्ट...
इनसे सीखें राजनेता, सैनिक का बस एक ही धर्म होता है; राष्ट्रधर्मदेश सेवा का है जज्बा
पकरिया गांव निवासी सैयद कौसर अली, आसिफ रजा, सैयद जीशान, नदीम अहमद, जमीर हैदर, सलमान हैदर, सद्दाम अहमद आदि दर्जनों युवा बड़ी शान से कहते हैं कि वे पूर्वजों की तरह ही फौजी बन देश सेवा करना चाहते हैं। बड़े गर्व से बताते हैं कि वतन पर मर मिटने वाले सैनिकों की बहादुरी के किस्से-कहानियां सुनकर ही वे बड़े हुए हैं।
यह राष्ट्रधर्म ही है, जो भारतीय सैनिक को देश की रक्षा में सर्वस्व न्यौछावर करने का जज्बा देता है। हिंदू हो या मुसलमान, देश का कोई बेटा जब सैनिक बनता है तो इसी जज्बे को लेकर। आइये रुख करते हैं झारखंड के एक ऐसे गांव का, जो मुस्लिम बहुल है और जिसके हर घर का बेटा सैनिक है। पलामू जिले के पांकी प्रखंड का पकरिया-टइया गांव देश पर जान लुटाने वाले सैनिकों का गांव है। यहां पहुंचकर राष्ट्रधर्म के मायने समझे जा सकते हैं, जिसकी बात भारतीय सेना कर रही है। सेना के लिए होने वाली लगभग हर भर्ती रैली में इस गांव का दबदबा रहता है। इस समय गांव के 80 प्रतिशत मुस्लिम युवा सेना-पुलिस में सेवाएं दे रहे हैं। साल 1952 में सैयद समशुद्दीन इस गांव के पहले व्यक्ति थे, जो सेना में गए थे। इसके बाद जो सिलसिला शुरू हुआ वो आजतक नहीं थमा। नतीजा यह है कि यहां होश संभालते ही युवा सेना में भर्ती होने की तैयारी शुरू कर देते हैं। उनके आदर्श बनते हैं उनके ही दादा, पिता और बड़े भाई।
इसी जज्बे को राष्ट्रधर्म कहते हैं.
यहां आप किसी भी सुबह पहुंच जाएं, दर्जनों युवक मैदान पर दौड़ लगाते दिख जाएंगे। सेना में भर्ती होने को लेकर इनकी बेताबी देखते ही बनती है। इनका यह जज्बा और यह जुनून सैनिक बनने के बाद और भी बढ़ जाता है। इसी जज्बे को राष्ट्रधर्म कहते हैं। 300 घरों वाले इस गांव में कई परिवार तो ऐसे हैं, जिनमें तीन-तीन पीढ़ियां (दादा, बेटा व पोता) सेना में गईं। सैयद तैयब अली बताते हैं कि वे 1970 में बीएसएफ में भर्ती हुए थे। फिर सीआइएसएफ में सेवाएं दीं। 1980-84 तक मिसाइल मैन डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के बॉडीगार्ड के रूप में सेवाएं दीं। अली के चार बेटे भी बतौर जवान देश की सेवा में लगे हुए हैं।
सजदे से कम नहीं सरहद की सुरक्षा
आइये अब भारत-पाकिस्तान नियंत्रण रेखा की ओर चलते हैं। तरकुंडी सेक्टर। ठीक सीमा से सटा इलाका। गोलाबारी रोजमर्रा की बात है। यहीं सरहद किनारे एक पुरानी और प्रसिद्ध मजार है। आजादी के बाद से इस मजार की देखरेख सेना कर रही है।
मजार पर सजदा करने दूर-दूर से अकीदतमंद आते हैं। सीमा पार से बरसने वाले गोले-गोलियों के बीच मजार परिसर और अकीदतमंदों की हिफाजत सेना पूरी शिद्दत से करती आई है। अकीदतमंदों को हर सुविधा मुहैया करवाई जाती है। सेना हर वीरवार को मजार पर भंडारा भी लगाती है। तारकुंडी के स्थानीय निवासी मुहम्मद अलताफ बताते हैं कि यह पीर अल्लाह दित्ता शाह की मजार है, जो दुश्मन के नापाक गोलों से हमारी रक्षा करती है। सेना के एक अधिकारी ने बताया कि नियंत्रण रेखा पर तैनात जवानों की भी इस मजार के प्रति उतनी ही आस्था है। यही वजह है कि आज तक दुश्मन का एक भी गोला इसे छू तक नहीं सका है।