
उन्होंने कहा था कि इस समझौते से अमेरिका को खरबों डॉलर का बोझ पड़ेगा। नौकरियां खत्म होंगी और तेल, गैस, कोयला एवं निर्माण उद्योगों पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। लेकिन उन्होंने यह भी कहा था कि फिर से समझौता करने का विकल्प वह खुला रखेंगे। एक साल के दौरान करीब 200 देश समझौते से सहमत हुए थे।
कंजरवेटिव पोलिटिकल एक्शन कमेटी को संबोधित करते हुए ट्रंप ने कहा, 'पेरिस जलवायु समझौते से हम बाहर हुए। यह देश के लिए बहुत बड़ी त्रासदी साबित होती।' ट्रंप ने तर्क दिया कि चीन और भारत जैसे देशों को पेरिस समझौते से लाभ मिल रहा है।
उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन पर समझौता अमेरिका के लिए उचित नहीं था क्योंकि इससे देश का कारोबार और रोजगार बुरी तरह प्रभावित होता। अपने फैसले का पक्ष लेते हुए ट्रंप ने कहा, 'आपके पास तेल और गैस का प्रचुर भंडार है। आप जानते हैं कि तकनीक अद्भुत है। हमने ऐसी चीजें पाई हैं जिसके बारे में हम नहीं जानते थे। हम दुनिया में शीर्ष के करीब हैं। हमारे पास ऊर्जा का अक्षय भंडार है। हमारे पास कोयला है। असल बात यह है कि वे कहते हैं, इसका इस्तेमाल नहीं करें। यह हमें अन्य देशों के साथ प्रतिस्पर्द्धा से बहार कर देता। मैंने उन्हें कह दिया कि ऐसा नहीं होने जा रहा।'
अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा, 'चीन अपना समझौता 2030 तक लागू नहीं करने जा रहा। हमारा समझौता तत्काल लागू होता। उन्होंने रूस को 1990 के दशक में जाने की अनुमति दी। यह अवधि स्वच्छ पर्यावरण की नहीं थी।'
भारत और अन्य देशों पर की गई टिप्पणी में ट्रंप ने कहा, 'अन्य देशों, भारत एवं अन्य को हमें भुगतान करना होता। इसका कारण यह है कि इन्हें विकासशील देश माना जाता है। ये विकासशील देश हैं। मैंने पूछा, हम क्या हैं? हमें भी विकास करने की अनुमति है? वे कहते हैं कि भारत एक विकासशील देश है। वे चीन को विकासशील कहते हैं। लेकिन अमेरिका? हम विकसित हैं। हमें भुगतान करना होगा।'
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